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________________ हजूरी पद - संग्रह | कथानाथ श्रेणिक समदृष्टी) कियो नरक दुखदायं ॥ प्रभु तेरी० ॥ ३ ॥ सेव असेव कहा चलै जियकी, जो तुम करो सुन्याय । द्यानत सेवकगुन गहि लीजै, दोप सबै छिटकाय । प्रभुतेरी 118 11 ९० | राग विलावल ! प्रभु तुम सुमरनहीतें तारे ॥ प्रभु० ॥ टेक ॥ सूकर सिंह न्यौल बानर जे, कहो कौन व्रत धारे ॥ प्रभुः ॥ १ ॥ सांप जापकर सुरपद पायो, स्वानश्यालभय जारे । भेकै बोके गज अमर कहाए, दुरगति भाव विदारे ॥ प्रभुः ॥ २ ॥ भील चौर मातंग जु गनिका, बहुतनिके दुख टारे । चक्री भरत कहा तप कीनो, लोकालोक 1 w . निहारे ॥ प्रभु तुम० ॥ ३ ॥ उत्तम मध्यम भेद न कीनों, आये शरन उंवारे । द्यानत रागरोष विन स्वामी, पाये भाग हमारे ॥ प्रभु० ॥ ४ ॥ .. १ न्योला । २ मेंढक । ३ बकरा | ४ चंडाल ! .
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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