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________________ : हजूरी पद-संग्रह। घर सकल करै थुति ठगढे, जय भवजलपोतेश्वर । द्यानत.हम स्थि कहा कहैं, कहन सकत. सर्वेश्वर ॥ जय जय० ॥४॥ . . ८७। राग गौरी। श्रीआदिनाथ तारनतरनं ॥ श्री० ॥ टेक॥ नाभिराय मरुदेवी नंदन, जनम अयोध्या अघहरनं ॥श्रीआदि० ॥१॥ कलपवृक्ष गये जुगल दुखित भये, करमभूमिविधि सुख-करन । अपछरनृत्य-मृत्यु लखि चेते,भवतन भोग जोगधरनं ॥ श्रीआदि०॥ कायोत्सर्ग छमास धरयो दिढ, वन-खग-मृग पूजतचरनं। धीरजधारी बरस अहारी, सहम वरस तपआचरनं ॥श्री आदि०॥ करम नास परगासि ज्ञानको, सुरपति कियो समोसरंन । सबजनसुख दे शिवपुर पहुंचे, धानत भवितुमपदसरन ॥ श्री० आदि० ॥४॥ (८८) .प्रभु.तेरी महिमा किह मुख गावें ॥प्रमुगाटेक १.संसाररूपी समुद्रसे तारने वाली जहानके खामी। २ अल्पज्ञानी । -- -
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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