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________________ जैनपदसागर प्रथमभागअब०॥१॥ ज्ञानी ध्यानी दानी जानी, वानी । गहर गंभीर।मोखके कारन दोष निवारन, रोष विदारन, वीर ।। अब० ॥२॥ आनंद पूरत समतामूरत, चूरत आपदपीर ॥वालजती दृढ व्रती समकिती, दुखदावानल नीर ॥ अव०॥३॥ गुन अनंत भगवंत अंत नहि, शशि कपूर हिम हीर। धानत एकहु गुन हम पावें, दूर करै भव... भीर ॥ अब० ॥४॥ ८६ राग गौरी। जय जय नेमिनाथ परमेश्वर।जय जयगाटेक॥ उत्तम पुरुषनिको अति दुर्लभ, बालशील धरनेश्वर ॥ जय जय० ॥ ॥ सेव करें नारायण बहु नृप, जय अघतिमिरदिनेश्वर । तुम जस महिमा । हम कहा जाने, भाखत सकल सुरेश्वर ॥ जय जय० ॥२॥ इंद्र सबहिं मिल पूर्जे ध्यावे, जय भ्रमतपतनिशेश्वर । गुन अनंत हम अंत न पावें वरनन सकत गनेश्वर ।। जय जय० ॥३॥ गण: १ सूर्य १२ चंद्रमा । ३ गणधर । । ............
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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