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________________ हजूरी पद-संग्रह। ' समता संग केलि ॥ तुम० ॥२॥ द्यानत वानी पिकमधुररूप, सुरनर पशु आनंद घन-खरूपः । ॥ तुम०॥३॥ . ' .. ८४। रागगौरी। · देखो भाई श्रीजिनराज विराज । देखो ॥ टेक ॥ कंचन मणिमय सिंहपीठपर, अंतरीछ प्रभु छाजें। देखो०॥१॥ तीन छत्र त्रिभुवन जस जैप, चौसठि चमर समाजै । वानी जोजन । घोर मोर सुनि, डर अहि:पातक भाजै ॥देखो. : ॥२॥ साढे बारह कौडि दुंदुभी, आदिक बाजे वाजै । वृक्ष अशोक दिपत भामंडल, कोटि सूर शशि लाजै ।। देखो०॥३॥ पहुपवृष्टि जल मंद पवन कर, इंद्र सेव नित साजै । प्रभु न बुलावै द्यानत जावे, सुरनर पशु निजकाजै ।देखो०४. ८५। राग गौरी। . ..। : · अव मोहि तार लेहु महावीर ॥अबगाटेका। : सिद्धास्थ-नंदन जगवंदन, पापनिकंदन धीर । . १ अधर आकाशमें । २ कहते हैं । ३ पापरूपी सर्पः। -
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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