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________________ १८९ हजूरी पद- संग्रह । २ || अवर देव सब रांगी द्वेषी, कामी कै मानी तुम हो वीतराग अकपायी, तजि राजुल रानी ॥ ज्ञानी ॥ ३ ॥ यह संसार दुःख ज्वाला तुजिं, भये मुकति थानी । द्यानत दास निकास जगततैं हम गरीब प्रानी ॥ ज्ञानी० ॥ ४ ॥ (७७). देख्या माने नेमिजी प्यारा || देख्या०॥टेक॥ मूरति ऊपर करों निछावर, तनः धन जोबन सारा ॥ देख्या० ॥ १ ॥ जाके नखकी शोभा आगें, कोटे- कामछवि डारों द्वारा । कोट- संख्य रविचंद छिपत हैं, वपुकी द्युति है अपरंपारा || देख्या ० ||२|| जिनके वचन सुने जिन भविजन, : तजि घर मुनिवरका व्रत धारा । जाक्की जस 'इंद्रादिक गावें, पार्वै सुख नारौं दुखभारा। देख्या ० ॥ ३ ॥ जाके केवलज्ञानं विराजत, लोकालोक | प्रकाशनहारा । चरण गहेकी लाज निवाहो, - प्रभुजी द्यानत भंगत तिहारा ॥ देख्या ॥ ४ ॥ 1 · १ करोडों कामदेवोंकी सुंदरता
SR No.010373
Book TitleJainpad Sagar 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages213
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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