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________________ (८६) द्रन्य था यह खर्च हो चुका। अब कुछ थोडासा बाकी है । संभव है उसके द्वारा चार छह महीने और काम चल सके। हम नहीं मानते कि जिस संस्थामें बड़े बड़े धनिक शामिल है, उसकी यह हालत क्यों ? जान पड़ता है उसके मालिक ऐसे नातीय सुधारके कामोको पसन्द नहीं करते है । करें क्यों ? जिनका धन असामयिक, अनुपयोगी और नातिके नष्ट करनेवाले कामोंमें बड़ी उदारताके साथ सर्च होता है उन्हें इन कामोंसे जरूरत ? उनके लिए जाति कल नष्ट होती हो तो वह आज ही हो जाय, उन्हें इसका कुछ दुःख नहीं। ऐसे लोगोंके विचारोंपर खेद होता है । जातिके बुरे दिन यही कहलाते है। प्रथमवार्षिक विवरण-श्रीऋषमब्रह्मचर्याश्रमके प्रथम वर्षका सक्षिप्त हाल । बाबू भगवानदीनजीके द्वारा समालोचनार्थ प्राप्त । विवरणको पढ़कर बहुत सन्तोष होता है। आश्रम अपना काम अच्छी तरह कर रहा है। पहले वर्षमें ही उसे ३६ विद्यार्थियोंका मिल जाना आगेके लिए बहुत उन्नतिकी आशा दिलाता है। आमदनी भी इस वर्षकी सन्तोष जनक हुई है। ११५९८॥) की आमदनी होकर ५८७४॥) खर्च हुए हैं । इससे नान पड़ता है कि जैन समाजमें कुछ कुछ विद्याकी उपयोगिता समझी जाने लगी है । पर अभी नैनियोंके लिए बहुत कुछ करना बाकी है । इस लिए हम उनका ध्यान आश्रमकी ओर खींचते है | अभी जितना कुछ हो रहा है, उसके लिए केवल यही कहा जा सकता है कि हां कुछ न होनेसे यह अच्छा है। इनके अतिरिक्त हमारे पास जैनवोर्डिंगलाहोर और ऐलक
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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