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________________ पन्नालालनपाठशालाशोलापुरकी रिपोर्ट भी समालोचनार्थ आई हैं। पर खेद है कि स्थानके न रहनेमे उनके सम्बन्धमें हम कुछ विशेष नहीं लिख सकें। हम उक्त संस्थाओंके उदार कार्यकर्ताओंसे इस बाबत क्षमा चाहते हैं। समाचारसार। जयपुर से हमारे पास एक हितैषी महाशयका भेजा हुआ लेख आया है । लेख विलम्बसे पहुचनेके कारण हम उसे छाप न सके । उसका सक्षिप्त सार यह है, कि "जयपुरमें पहले जैनियोंकी वहुत संख्या थी पर जबसे जातिमें कन्याविक्रय और वृद्धविवाहकी बुरी प्रथा जारी हुई है तबसे यहा जैनियोंकी सख्याका हास ही होता जाता है । घटते घटते आज मुस्किलसे छह हजार सख्या वची होगी । इतनेपर भी जातिके कुलकलंक बूड़ोंको शर्म नहीं लगती जो मरते मरते भी वे विवाह करनेकी तैयारी करते है । बेचारी वालिकाओंका जीवन नष्ट करना चाहते हैं। पाठक, मुझे कुछ लिखनेकी नरत न थी,पर इस महीनेमें दो बूढ़े बाबा अपना विवाह करेंगे । मुझे वेचारी उन अबोध बालिकाओंपर दया आई। मेरा हृदय उनके भावी दुःखको न सह सका । इस लिए जातिके सामने यह हाल मुझे उपस्थित करना पड़ा। क्या नातिके पञ्च अपनी इन्द्रियोंको वश करके एक दिनके भोजनकी परवा न करके-इस घोर अत्याचारका प्रतिकार करेंगे? क्या उन अपनी लड़कियोंके भावी जीवनपर खयाल करके उनके गलेपर चलती हुई छुरीको रोकेंगे ? और इन बूढे न्यानोंके लिए इस
SR No.010369
Book TitleJain Tithi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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