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________________ व्यापकता होती है कि सारा संसार समाया रहता है। इसलिए वह जीवन का कलात्मक सर्जन है।7 साहित्यिक क्षेत्र में उपन्यास ही एक ऐसा उपकरण है जिसके द्वारा सामूहिक मानव-जीवन अपनी समस्त भावनाओं एवं चिन्ताओं के साथ सम्पूर्ण रूप में अभिव्यक्त हो सकता है। मानव-जीवन के विविध चित्रो को चित्रित करने का जितना अधिक अवकाश उपन्यास में मिलता है उतना अन्य साहित्यिक विधाओं में नहीं।28 कथा साहित्य में मानव जीवन की अभिव्यक्ति है तथा मानव-जीवन का जीवन्त चित्र है। कथाकार मानव-जीवन का कैमरामैन नहीं, वरन् कलाकार अवश्य है क्योंकि वह किसी यन्त्र के माध्यम से चित्र नहीं बनाता, वरन् मानसिक दृष्टि से जीवन की विभिन्न महत्वपूर्ण घटनाओं का सम्बन्ध मनुष्य के जीवन से जोड़ता है। युग की गतिशील पृष्ठिभूमि पर सहज शैली में स्वाभाविक जीवन की एक पूर्ण व्यापक झाँकी प्रस्तुत करने वाला गद्यकाव्य उपन्यास कहलाता है। मनुष्य के जीवन के विभिन्न अनुभवों का कथा साहित्य में समावेश रहता है। मनुष्य के अनुभव की कोई सीमा नहीं है-वह विज्ञान का क्षेत्र स्पर्श करता है, साहित्य,संगीत, एवं कला में भी रूचि रखता है, पशु-पक्षियों एवं प्राणियों से भी वह अपना सम्बन्ध रखता है। उसका सम्बन्ध निर्जीव प्रकृति से भी है। पृथ्वी से लेकर आकाश तक सब से वह सम्बन्ध रखता है। उनसे वह जो कुछ भी ग्रहण करता है उसी से साहित्य की रचना करता है। उपन्यास यथार्थ की प्रतिच्छाया है। वह इस सृष्टि का यथार्थ चित्र है, जिसमें कथाकार उसका सामाजिक रूप विधान, उसका वर्ग सभी कुछ व्यापक अर्थों में आ जाते हैं। वह जीवन की एक ऐसी दृष्टि की अभिव्यंजना करता है, जो यथार्थ की अपेक्षा पूर्ण 27 डॉ० महावीर लोढा - हिन्दी उपन्यासो का शास्त्रीय विवेचन, पृष्ठ - 4 28 डॉ० त्रिभुवन सिंह - हिन्दी उपन्यास और यथार्थवाद, पृष्ठ -1 29 डॉ० भगीरथ मिश्र - काव्य शास्त्र, पृष्ठ - 73 30. डॉ० सुरेश सिन्हा - हिन्दी उपन्यास उद्भव और विकास, पृष्ठ - 3 [24]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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