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________________ है, विस्तृत एवं व्यापक है तथा अधिक सत्य है। उपन्यासकार किसा उपन्यास का निर्माण उसी तरह करता है जैसे एक चित्रकार चित्र का सृजन करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मनुष्य एवं उसके युग का सर्वांगीण यथार्थ चित्र अन्य विधाओं की अपेक्षा कथा साहित्य में सहज रूप से उभर कर आता है। विश्व कथा साहित्य का जन्म, विकास एवं समृद्धि युगचेतना के समानान्तर हुई हैं। कथा साहित्य युग चेतना का संवाहक ही नहीं, अपितु युग की गतिशील पृष्ठभूमि पर गतिशील जन जीवन का चितेरा है। आज के जीवन की उथल-पुथल एवं भागवत अन्तर्द्धन्द की अभिव्यक्ति की सर्वोत्तम विधा उपन्यास है। उन्नीसवीं शताब्दी से पूर्व भारतीय समाज में सरलता थी, मूल्यगत स्थायित्व था। फलतः उपन्यास जैसे परिवर्तन प्रिय साहित्यिक रूप की आवश्यकता भी नहीं थी। युग चेतना इतनी गुम्फित, संघर्षमयी तथा असाधारण हो गयी कि पद्य के माध्यम से उसकी अभिव्यक्ति उतनी आसान नहीं रही, जितनी प्राचीन काल में सम्भव थी। मक्खनलाल शर्मा के अनुसार "साहित्य के जितने भी रूप विधान हो सकते हैं, उनमें उपन्यास का रूप विधान अपनी विशिष्टता के कारण युगानुकूल युग चेतना का संवाहक बनकर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करता आया है।33 आज के युग में हम उन्नति के पथ पर जल्दी से बढ़ रहे हैं तो उसी के अनुसार अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम को परिवर्तित करना पड़ेगा। कथा साहित्य हमारी इस आवश्यकता की पूर्ति करता है। आज के जीवन के भाव-सत्य को अपनी समग्रता में सभी स्तरों और आयामों में व्यपकता और गहनता के दोनों क्षेत्रों में अभिव्यक्ति करने 31 डॉ० रिचर्ड स्टेग - दि थ्योरी ऑफ नावेल इन इंग्लैंड, पृष्ठ - 11 32 डॉ० लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय - बीसवीं शताब्दी - हिन्दी साहित्य . नये सन्दर्भ, पृष्ठ - 252 33 मक्खन लाल शर्मा-हिन्दी उपन्यास : सिद्धान्त और समीक्षा, पृष्ठ -4 [25]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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