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________________ 'चेतना जो अनुभूतियों की जननी है वह साहित्यात्मा है तो युग चेतना उसके आलोकमय नेत्र हैं, जिनसे वह सारे संसार का सौन्दर्य आत्मसात् करता है। साहित्य चेतना के अभाव में निर्जीव हो जाता है तथा युग चेतना के अभाव में अंधा, जो न वर्तमान के बारे में कुछ कह सकता है और न भविष्य के बारें में कुछ देख सकता है। युग चेतना और उसके विविध स्तर किसी भी साहित्य के निर्माण में समसामयिक सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का विशेष योगदान रहता है। ये परिस्थितियाँ तत्कालीन जन-जीवन की आशा और आकांक्षाओं का दर्पण होती हैं। सामाजिक परिवर्तन एवं नियन्त्रण के विभिन्न रूप युगचेतना के द्वारा सृजित साहित्य में मिलते हैं। किसी युग विशेष के साहित्य का अध्ययन उस युग विशेष की परिस्थितियों का दर्पण होता है। अतः उससे हम उस युग के तत्कालीन जीवन को भली-भाँति समझ सकते है, जो नैतिक मूल्य तत्कालीन समाज के लिए आवश्यक थे, लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में मात्र रूढ़ि बनकर रह गये हैं। ऐसे मूल्यों को साहित्यकार अपने साहित्य में रचना नही करता है, बल्कि युगानुकूल नैतिक मूल्यों की स्थापना करता है। जिस साहित्यिक कृति में युग द्रष्टा एवं युग सृष्टा दोनों का समन्वय पाया जाता है, वह युग-साहित्य के नाम से पुकारा जाता है। युग चेतना से न तो साहित्यकार ही अपने को अलग कर पाता है न साहित्य ही, अर्थात् दोनों पर युग चेतना का प्रभाव रहता है। साहित्यकार युग चेतना से अपने साहित्य को अलग कर 8. डॉ० बैजनाथ प्रसाद शुक्ल-भगवती चरण वर्मा के उपन्यासों मे 'युग चेतना', पृष्ठ -9 171
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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