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________________ मानव-जीवन से प्रेरणा प्राप्त करते समय भावुक हृदय दो प्रकार से उत्प्रेरित होता है-प्रथम तो उसके हृदय पर मानव-जीवन की घटनाएँ यथार्थ रूप में उतर आती है, जिन्हें वह कला के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। द्वितीय वह है, जब साहित्यकार घटनाओं के क्रियात्मक रूप से प्रेरित नहीं होता, अपितु उनके प्रति उसके हृदय में प्रतिक्रिया होती है और उनकी आलोचना-प्रत्यालोचना करता हुआ एक अभिनव भावी मार्ग की ओर अग्रसर होकर युग जीवन को आदर्श की ओर ले जाने का भावनात्मक प्रयत्न करता है। ऐसी रचनाओं को युग-प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार किया जाता है, जिनमें युग चेतना के प्रतिबिम्ब स्पष्ट दिखायी देते हैं तथा इनकी प्रेरणाएँ युगीन तो होती ही हैं, साथ ही उनमें भावी युग के नवनिर्माण का सन्देश भी होता है। युगचेतना की महत्ता साहित्य में युग चेतना का अपना विशिष्ट स्थान है। युग का प्रतिनिधित्व करने वाला साहित्यकार युगीन चेतना को अनिवार्य रूप से स्वीकार करता है। युग चेतना के अभाव में वह मानव-जीवन की वास्तविक समस्याओं को न तो पहचान सकता है और न ही जीवन की यथार्थ समस्याओं से समाज को अवगत करा सकता है और न ही उसे उचित दिशा-निर्देश करा सकता है। साहित्यकार का परम कर्तव्य हो जाता है कि वह केवल व्यक्ति के दृष्टि-कोण को ही महत्व न दे, अपितु सामाजिक दृष्टिकोण की सूक्ष्मता से निरीक्षण करे। साहित्य जो समष्टिगत चेतना की देन होती है, उसमें युगचेतना संश्लिष्ट होती है। डॉ० बैजनाथ प्रसाद शुक्ल के शब्दों में हम कह सकते हैं
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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