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________________ 'सुखदा' और 'विवर्त' के पुरुष पात्र बहुत कायर और बुजदिल प्रतीत होते हैं। अहिंसा साहस में है. विवशता में नहीं। अपरिग्रह जैनेन्द्र अपने जीवन और साहित्य में मध्यम मार्ग को अपनाकर चले हैं। उनके अनुसार ईश्वरोन्मुखता को छोड़कर किसी भी मार्ग की एकोन्मुखता स्वाभाविक नहीं है। धर्म हृदय की वस्तु है। अतः अपरिग्रह की भावना हृदय में होनी चाहिए, क्योंकि प्रायः वाह्य जीवन में अपरिग्रही दिखाई देने से व्यक्ति की वस्तु के प्रति बहुत अधिक आसक्ति होती है। अनासक्ति भाव से प्राप्त की गयी कोई भी निधि व्यक्ति को उसके धर्म से अलग नहीं कर सकती। जैनेन्द्र के अनुसार 'अपरिग्रह की कृतार्थता वस्तु के अछूते रहने में नहीं है, वस्तु के मध्य खुले रहने में है। जैनेन्द्र के अनुसार हमारी प्रवृत्ति सहज होनी चाहिए। जैनेन्द्र के कथा साहित्य में उनकी अपरिग्रहिता का समावेश मिलता है। वे हमेशा कम से कम में कार्य करने में सन्तुष्ट रहते हैं। उनका जीवन दिखावे से दूर नितान्त सादा है। उनके अनुसार त्याग में अहं का समावेश नहीं होना चाहिए। प्रत्येक सुख का त्याग करने वाले व्यक्ति में अपने कर्म का बोध बना रहता है और वह यह सोचता है कि मैंने यह त्याग किया है, तो कभी अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकता। 'बाहुबली' कहानी में सम्पूर्ण राज्य-सुखों को त्यागकर कैवल्य बाहुबली नहीं प्राप्त कर पाता, किन्तु उसका भाई चक्रवर्ती मरत राज्यभोग करता हुआ भी सहज ही मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। किन्तु बाहुबली को अपने त्याग और तप का बोध बना रहता है। लाल सरोवर कहानी में वैरागी अत्यधिक विनम्र है, वह अपने महत्व से 43 जैनेन्द्र कुमार - प्रश्न और प्रश्न, पृष्ठ- 110 44 जैनेन्द्र कुमार - जैनेन्द्र की प्रतिनिधि कहानियाँ (बाहुबली), पृष्ठ - 171 [108]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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