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________________ 'जो चीज तुम्हें दुःख पहुँचाती है, हिंसा वही करने के लिए तुम्हें बाध्य करती है। यश-प्रतिष्ठा जिससे तुम भागना चाहते हो, वे ही तुम्हें चिपटानी पड़ती है, किन्तु मैं समझता हूँ शिव का वह विराट उत्सर्ग का अवसर है। x x x x x तब जो तुम जैसे विरलों को मिलता है, तुम खोओगे नहीं। जैनेन्द्र के कथा-साहित्य में कर्म निष्ठा को प्रधान माना गया है। जैनेन्द्र के साहित्य में अहिंसा विविध रूपों में मिलती हैं। उन्होने उपने साहित्य में पात्रों के चित्रण में अपनी पूर्ण अहिंसक नीति का समावेश किया है। जैनेन्द्र के पात्र किसी को दुःख पहुँचाना नहीं चाहते। उनके पात्र स्वयं कष्ट झेलकर मृत्यु को प्राप्त कर लेते हैं, किन्तु अपने कारण किसी को कष्ट नहीं देते। ‘परख' में कट्टो तथा ‘त्यागपत्र' में 'मृणाल" उनके ऐसे ही पात्र हैं जिनका सम्पूर्ण जीवन कष्टों में उलझा ही रहा। 'परख' में कट्टो अपने प्रेमी की खुशी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देती है। वह यह कदापि पसन्द नहीं करती कि उसके कारण उसके प्रेमी को कष्ट का अनुभव हो। 'त्यागपत्र' में मृणाल का सम्पूर्ण जीवन दुःख से पूर्ण है, किन्तु वह अपने दुःखों को बाँटना नहीं चाहती। वह यह कदापि स्वीकार नहीं करती कि उसके पीछे उसके भतीजे प्रमोद को कष्ट हो। इन दोनों उपन्यासों में जैनेन्द्र ने निज की व्यथा को सहने में ही अपनी अहिंसक नीति का परिचय दिया है। 'सुखदा', 'विवर्त' में भी जैनेन्द्र ने सुखदा और भुवनमोहिनी के पति को उनके प्यार की रक्षा के हेतु कष्ट सहते हुए दिखाया है, किन्तु उपरोक्त उपन्यासों में तथा इन उपन्यासों की स्थिति में अन्तर है। उनमें बलिदान की चरम सीमा थी, वह बलिदान सहर्ष था, किन्तु इन उपन्यासों में पुरुष पात्रों की दुर्बलता का परिचय मिलता है। 42 जैनेन्द्र कुमार - जैनेन्द्र की प्रतिनिधि कहानियाँ (निर्मम), पृष्ठ - 46 [107]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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