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________________ मुक्त प्रयोग थी। खैर, वे चर्चाए दब गई हैं। लेकिन जिन दिनो खूब चलती थी, तव भी शेइलेन उस कारण किसी ओर से मद नही दीखता था। अब तो वह और जोरो पर है । बौद्धिक क्षेत्रो मे प्रवेश से भी अधिक उस का प्रभाव है । लोग उससे दबते और रोब मानते है । कारण, वह हर समय मानव-जाति के अत करण का प्रतिनिधि होकर साफ-साफ कहने को उद्यत रहता है और झूठी विनय के चक्कर मे नही पडता। परिणाम यह कि वह ख्यात होकर भी पुरुषो मे एकाकी है । प्रिय और अभ्यर्थनीय है स्त्री-वर्ग मे । शेइलेन ने वटुआ निकाल कर देखा, वही ठीक साढे सात रुपये थे। बटुया बन्द कर उसने जेब मे रख लिया । टिन मे से नई सिगरेट निकाली, पहली वाली से छुला कर सुलगाई, और गहरा कश खीचा । फिर अलस पाराम के साथ पहली सिगरेट को घिस कर बुझाया। अब कलाई की घडी देखी । साढे छ से दो मिनट ऊपर हुए जा रहे है । उसको भल्लाहट हुई। मानो वह अपने तिरस्कार से विश्व को तोड़ डालेगा। उसने क्रोध मे निगाह उठा कर दरवाजे की ओर देखा। देखते ही निगाह हटा ली और वह कुछ मुसकराया। उस ने अनुभव किया कि रेस्त्रा के इस बिल्कुल सूने कोने-किनारे को चुन कर उसने ठीक ही किया था। द्वार में से प्रवेश लेकर ठिठकी खडी युवती ने हाल मे इस-उस मेज पर चारो ओर देखा। अनेक निगाहो ने उठकर उस की ओर निहारा । लेकिन उनमे वह परिचित निगाह न दीखी, जिसकी उसे तलाश थी । अन्त मे उसका ध्यान कोने की ओर गया। अवश्य वह शेइलेन है । लेकिन ऐसा वेभान और वेमन और अनुत्तुक । युवती तेज चाल से बढती हुई वहा पहुची । बोली-"हलो।" शेइलेन ने आवाज़ सुन कर निगाह सामने की । तनिक मुस्करा कर पहचाना और सिगरेट के रुके काश के धुए को होठो के परले किनारों से धीमे-धीमे करके छोडा, कुछ कहा नही ।
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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