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________________ यथावत BO कर सकती थी। दया मे एक दूसरे को हम भरते नही, मारते ही रहते । वह कैसे हो सकता था। तुमसे नहीं हो सकता था-मुझसे नहीं हो सकता था । अव भी दया नही है जो मागने आई हूँ। जगरूप मेरा है, वैसे तुम्हारा है।" "कहा है ?" "स्टेशन पर छोड आई हूँ।" "स्टेशन पर ? 'तुम कितनी बदल गई हो मन्ना ।" "नही, बदली नहीं है। यह अगिया तुम रखोगे या मेरे पास रहने दोगे?" "मैं उस दुस्साहस की क्या अब माफी माग सकता हू ?" "वही प्रेम की निशानी है । साहस नही जिसमे वह प्रेम होता भी है ?-लाओ, मुझे दो।" ___मनोरमा ने उसी ऐतिहात से फटी अगिया को कागज की तीन तहों मे लपेटा और रिबन से बाधा । डी० एम० देखता रहा। ___ बस । · और आगे कहानी की आवश्यकता नही है । कारण, जगरूप इलाहावाद कालेज में पढने चला गया, और मनोरमा अपनी प्राइमरी कन्या शाला मे आ गई, और भागलपुर के डी० एम० अपने प्रशासन के काम मे व्यस्त रहे चले गए। दिसम्बर '६४
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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