SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४ जैनेन्द्र की कहानिया दसवा भाग सकता है, अभी बैठना होगा । मनोरमा बरामदे मे जो स्टूल बताया गया, उस पर शान्ति के साथ बैठकर इन्तजार करने लगी । आजकल अनिश्चित दिन है और शासन को कसा रहना पडता है । वर्मा साहब यू भी परायण और योग्य समझे जाते हैं। वह काफी सवेरे उठ जाते है और तैयार होकर मेज पर श्रा जाते हैं । श्राते ही एक कप चाय का लेकर दो ढाई घंटे तक लगातार काम करते है । इस काम के बीच उन्हे व्याघात पसन्द नही होता । इसीलिए कहला दिया गया कि डेउ घटा लग सकता है | लेकिन बीच में घटी बजाकर प्रर्दली से उन्होने पूछा, "आए है जो साहब, बैठे है न ? उन्हे कोई जल्दी तो नहीं है ?" "जी, नही बैठी है ।" "कौन ? स्त्री है ?" | 3, "जी, हुजूर "तो" अभी जरा बैठेंगी। माफी माग लेना कहा विठाया है " बैठक मे बैठेगी।" अर्दली ने विशेष चिन्ता न की । और बरामदे मे स्टूल पर मनोरमा बैठी रहने दी गई । थोडी देर डी० एम० श्रपना काम करते रहे । फिर हाथ उठाकर कुर्सी के पीछे टिके, अगडाई ली और एकाएक मडे होकर चले और अपनी वैठक मे प्राए । बैठक मे कोई न था । लोटकर उसी मेज पर आए और घटी दी । अर्दली के थाने पर उसे उन्होने शेप से देखा और वहा, "उन्हें भेज दो ।" मनोरमा आकर झुकी और सामने की एक कुर्सी पर बैठ गई । "कहिए, मैं क्या कर सकता हू थापके लिए ?" मनोरमा ने उठकर रेशमी विन से लिपटा वह पैक्टि डी० एम० के सामने किया । डी० एम० ने आभार मानते हुए .... पैकिट लिया और मेज पर एक
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy