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________________ यथावत है । भगवान का भरोसा उसमे इतना हो गया है कि तकिए के नीचे रोज़ टटोल लेता है । पर यह क्या जरूरी है कि रुपये तकिए के नीचे ही रखे जाए ? इसलिए दिन जाते-जाते वह इधर-उधर पाले मे या खाट के पास या खाट के नीचे भी रुपए के लिए देखने लगा है । उसकी याद मे वह तारीख वरावर उभरती जा रही है कि जो दाखला फारम के लिए आखिरी है । उसे कभी होता है कि भगवान को तारीख की याद न रही तो कैसे होगा ? पर धत्, ये कैसे हो सकता है । भगवान मे भूल कैसे हो सकती है ? कमी भक्ति मे रहे तो दूसरी बात है। भगवान सब जानते है और सबके सहाय होते हैं । मैट्रिक तक की पढाई कम नहीं होती है। इतने मे लडका अच्छी तरह जान सकता है कि भगवान कोई नहीं होते, कहीं नहीं होते । वल्कि यह जान तो उससे पहले भी हो जाना चाहिए । जगरूप को यह सब मालूम है । भगवान का भेद मालूम है कि ढकोसला है। उसका विषय विज्ञान है कि जिसके हाथ मे सृष्टि का रहस्य है । फिर भी भगवान क्यो नही हो सकते ? मान लो अगर हो, तो ? मतलब कि ठीक तारीख से पहले भगवान पर भरोसा रखने से वह चुकेगा नही । तारीख अकारथ गई तो फिर ते है ही कि क्या सच है, क्या झूठ ! ___जगरूप अपने मे रहने लगा। मा से कहने को उसके पास मानो अव कुछ बचा नहीं है । उसकी तकदीर अलग है और मा उसमे कुछ नहीं कर सकती। मां इस सग्रह बर्प के जगरूप को एकाएक पानी है कि वह उसकी समझ से वरवस वाहर हो गया है । उसका हाल ही नहीं मिलता। पहले सव तरह की शिकायते उसके पास लाया करता या और तरहतरह के उलाहने । अव अपने मे समाया रहता है और जाने किस धुन में रहता है । उसके अदर इस बात पर एक गहरी उदानी घर करती जाती थी । जैसे अदर से कुछ खोखला हुआ जा रहा है। जैसे बरवस उससे कुछ छीना जा रहा हो । उसने कहा- 'जग्गी, वेटा, इतने न हो
SR No.010363
Book TitleJainendra Kahani 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1966
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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