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________________ जैनेन्द्र की कहानियां [सातवां भाग लीला-तुम नहीं जानतीं । तुम नहीं जानतीं। साधना ! [खिलखिला कर हँसती है।] कला-ऐसे न हँसो, लीला ! तुम्हारी तबियत अभी ठीक नहीं है। लीला-मेरी तबियत तो ठीक हो जायगी। तबियत ढीलने से बिगड़ती है। कल से फिर सफाई का काम मेरा है और यह काम पौ फटते तक में निबटा लूगी। कल से टट्टी-घर साफ करने का काम भी मुझे दे दो। थोड़े काम से मेरा जी नहीं भरता और रोग हावी होने लगता है। कला-क्या कह रही हो ? अभी तीन रोज तुम्हें किसी तरह के काम करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। लीला, तन से युद्ध न ठानो । चलो, तुम्हारे कमरे में चलें। आराम करना । ____ लीला-आराम से मैं तंग हूँ। चार रोज से और क्या कर रही हूँ। तुम कहती हो कि रात को तीन बजे उठ कर जो बुहारी लगाने लगी, सो बड़ा काम किया है । (हँसती है। ) पर रात में पहर के पहर जागते काटना उससे आसान नहीं है। तब उठकर करने को काम पा जाती हूँ, तो चैन पा जाती हूँ । नहीं तो...और तुम कहती हो, साधना ! [खूब हँसती है।] ___ कला-देखती हूँ, तुम्हारी तबियत खराब है। ऐसे बोलना-हँसना ' ठीक नहीं। लीला-नहीं, तुम चिन्ता न करो। सब ठीक है। तबियत मेरी खराब नहीं है। यह बताओ, कला बहन, तुम कि हम जीते क्यों हैं । तुम क्यों जी रही हो ? मै क्यों जीऊँ ? बताओ, मैं क्यों जीऊँ ? कला-तुम्हारे उपवास का आज तीसरा रोज है, लीला ! ज्यादा बोलना कमजोरी लायेगा। लीला-उपवास कहाँ है । सब टूट गया। कैलाश बाबू आये और
SR No.010360
Book TitleJainendra Kahani 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1954
Total Pages217
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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