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________________ चिड़िया की बच्ची माधवदास ने अपनी संगमरमर की नई कोठी बनवाई है । उसके सामने बहुत सुहावना बगीचा भी लगवाया है । उनको कला से बहुत प्रेम है। उनके पास धन की कमी नहीं है और कोई व्यसन छू नहीं गया है। सुन्दर अभिरुचि के आदमी हैं। फूलपौधे रकाबियों से हौजों में लगे। फव्वारों में उछलता हुआ पानी उन्हें बहुत अच्छा लगता है । समय भी उनके पास काफी है। शाम को जब दिन की गरमी ढल जाती है और आसमान कई रंग का हो जाता है तब कोठी के बाहर चबूतरे पर तख्त डलवा कर मसनद के सहारे वह गलीचे पर बैठते हैं और प्रकृति की छटा निहारते हैं। इसमें मानो उनके मन को तृप्ति मिलती है। मित्र हुए तो उन से विनोद-चर्चा करते हैं, नहीं तो पास रखे हुए फर्शी हुक्के की सटक को मुँह में दिए ख्याल ही ख्याल में सन्ध्या को स्वप्न की भाँति गुजार देते हैं। आज कुछ-कुछ बादल थे। घटा गहरी नहीं थी। धूप का प्रकाश उनमें से छन-छन कर पा रहा था। माधवदास मसनद के सहारे बैठे थे। उन्हें जिन्दगी में क्या स्वाद नहीं मिला है ? पर ४८
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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