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________________ ४९ चिड़िया की बच्ची जी भर कर भी कुछ खाली-सा रहता है। इससे कभी मदिरा भी चख देखी है और यदा-कदा अध्यात्म का घूट ले लिया है। ऐसे ही यह-वह करते खुमारी में दिन बीते हैं। उस दिन सन्ध्या समय उनके देखते-देखते सामने की गुलाब की डाली पर एक चिड़िया आन बैठी। चिड़िया बहुत सुन्दर थी। उसकी गरदन लाल थी और गुलाबी होते-होते किनारों पर जराजरा नीली पड़ गई थी। पंख ऊपर से चमकदार स्याह थे। उसका नन्हा-सा सिर तो बहुत प्यारा लगता था। और शरीर पर चित्रविचित्र चित्रकारी थी। चिड़िया को मानो माधवदास की सत्ता का कुछ पता नहीं था और मानों तनिक देर का आराम भी उसे नहीं चाहिए था। अभी पर हिलाती थी, अभी फुदकती थी। वह खूब खुश मालूम होती थी। अपनी नन्ही-सी चोंच से प्यारी-प्यारी आवाज निकाल रही थी। माधवदास को वह चिड़िया बड़ी मनभावनी लगी । उसकी स्वच्छन्दता बड़ी प्यारी जान पड़ती थी। कुछ देर तक वह उस चिड़िया का इस डाल से उस डाल थिरकना देखते रहे । इस समय वह अपना बहुत-कुछ भूल गये। उन्होंने उस चिड़िया से कहा, "आओ, तुम बड़ी अच्छो भाई । यह बगीचा तुम लोगों के बिना सूना लगता है । सुनो चिड़िया, तुम खुशी से यह समझो कि यह बगीचा मैंने तुम्हारे लिए ही बनवाया है । तुम बेखटके यहाँ श्राया करो।" चिड़िया पहले तो असावधान रही। फिर यह जान कर कि बात उससे की जा रही है, वह एकाएक तो घबराई । फिर संकोच को जीतकर बोली, "मुझको मालूम नहीं था कि यह बगीचा आपका
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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