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________________ हवा-महल ४७ पाने का पहला अधिकार है और मैं उस अधिकार के सामने झुकता मन्त्री-लोग राजा की समझ से निराश हो रहे थे। आशा न थी कि स्थिति एकदम यों हाथ से बाहर हो जायगी। उनमें से कई अब सहज भाव से महाराज की प्रशंसा करने लगे। __ महाराज ने कहा, "मैं आप सबका कृतज्ञ हूँ । आशंका श्राप न करें । आपकी छुट्टी मैं नहीं रोक सकँगा। अभी से आप अपने को अवकाश-प्राप्त समझ सकते हैं। दूसरा प्रबन्ध न हो तब तक चाभियाँ मुझे सौंप जावें । प्रार्थना यह है कि आप मुझ पर सदा करुणा-भाव रखें।" इसके बाद एक-एक कर महाराज ने उन सबका अभिवादन लिया और बिदा किया।
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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