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________________ हवा-महल यह आकाश की ओर उठाने वाला महल है, या नरक की ओर ले जाने वाला कोई जाल है ! राजा ने वहाँ एक आदमी से पूछा, "भाई, यह सब क्या हो रहा है ?" सुनने-वाले ने बताया कि नये महाराज का नया महल बन रहा है । “तुम कहाँ रहते हो ? इतनी बात भी नहीं जानते हो ?" ___ महाराज ने कहा, "भाई, मैं भूले में रहता हूँ। मैं बहुत कम बात जानता हूँ । एक बात तो बताओ, भाई, कि ये इतने लोग एकदम कहाँ से यहाँ आ गये हैं ! पहले तो यह जगह सुनसान थी। यहाँ आने के लिए वे खाली हाथ बैठे थे क्या ? इससे पहले वे क्यों कुछ नहीं करते थे ?" ___ उस आदमी ने कहा, "तुम कैसे अनजान आदमी हो जी! आजकल करने को कौन धन्धा रह गया है ? जहाँ देखो वहीं कल । धरती नाज देती है, पर रोटी अपने हाथ से थोड़े ही वह दे देगी ! वह नाज धरती पर से साहूकार की कोठी में चला जाता है । सो किसान भूखा रहता है कि कब वह मजूर बनकर पेट पाले । इससे, मजूरी में रोटी दो तो हजार क्या लाख आदमी ले लो। तुम जाने कहाँ रहते हो जो इतना तक नहीं जानते । नये महाराज हमारे बड़े उपकारी हैं, जिससे इतने लोगों को काम मिल गया है। महाराज, “यह तो ठीक बात है। पर इस उपकार से पहले इन लोगों का क्या हाल था ?" आदमी, “वह हाल तुम नहीं जानते ?" महाराज, "बुरा हाल था ?" आदमी, "बस पूछो मत।" महाराज, "उसमें राजा का उपकार नहीं था ?"
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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