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________________ जैनेन्द्र की कहानियाँ [तृतीय भाग] सुनने वाले आदमी ने रिस भाव से कहा, "तुम कैसे आदमी हो जी, जो महाराज के विरोध की बात करते हो। तुम्हें कानून का और धर्म का डर नहीं है ? जाओ, तुम कोई खाली श्रादमी मालूम होते हो। हमको अपना काम है।" महाराज आगे बढ़ गये । धरती के भीतर खुदी हुई व्यूह-सी बनी उन मोरियों को यहाँ-वहाँ से देखते हुए वह कुछ काल घूमते रहे । थक-थकाकर फिर वह वापिस लौट आये। अगले दिन उन्होंने मन्त्रियों को बुलाकर पछा, “कहिए मन्त्रिगण, महल का काम कैसा हो रहा है ?" ___ मन्त्री, “काम तेजी से हो रहा है। महाराज, दस हजार मजूर लगे हैं। बस छः महीने में महल आप देखेंगे।" महाराज, “काम कितना हो गया है ?" मन्त्री, "बुनियादें पूरी हो गई हैं। बस अब चिनाई शुरू होगी।" महाराज, "चलो, देखें क्या हो रहा है।" मन्त्रियों के साथ महाराज मौके पर आये । देखकर बोले, “यह सब क्या है ?" __ मन्त्री, “हुजूर, अब यह नींव तैयार हो गई है। जमीन यहुत उमदा निकली । महल का पाया यहाँ बहुत मजबूत जमेगा । हजारों बरस बाद तक इससे आपका यश कायम रहेगा-" महाराज ने बीच में ही उन्हें रोक कर कहा, “यह कुछ हमारी समझ में नहीं आ रहा है । क्या आप याद दिलायेंगे कि हमने क्या कहा था।" ___ मन्त्री, "महाराज ने हवा-महल तैयार करने की इच्छा प्रकट की थी।" महाराज, "हवा-महल, ठीक । क्या और कुछ भी कहा था।"
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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