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________________ हवा महल जो कीर्ति बड़ों से मिलती है उसका बढ़ाना पुत्र का धर्म है। महाराज एक नया महल बनवाएँ।" महाराज ने कहा, "वह नया महल कैसा हो ?" मन्त्री, "हो ऐसा कि नये से नया । अपूर्व और सबसे सुन्दर और सब से ऊँचा।" महाराज, "फिर उस महल में क्या हो ?" मन्त्री, "हो क्या ! जो सुन्दर है सब हो। उस पर महाराज की पताका फहरे। उससे महाराज का सुयश चमकं । उसमें महाराज वास करें।" महाराज "तब इस महल का क्या हो ?" मन्त्री, "कैसा प्रश्न महाराज ! राजमहल गृहस्थ के घर नहीं हैं। गृहस्थ का एक होता है, इससे वह भरा रहता है। राजा के महल अनेक होते हैं और वे कई-कई खाली रहते हैं। खाली महल राज-वैभव के लक्षण हैं। राजा के वैभव को देखकर प्रजा प्रसन्न होती है। राजप्रासाद प्रजा के सौभाग्य के सूचक हैं। प्रजा की प्रसन्नता राजा का कर्तव्य है।" महाराज, “प्रजा को प्रसन्न रखने का यह उपाय है, मन्त्री जी?" ___ मन्त्री, "प्रजा को सन्तोष के लिए विस्मय चाहिए । विस्मय पा कर स्फूर्ति जागृत होती है। ऐसा महल बनना चाहिए, महाराज, जो विस्मय-सा सुन्दर हो । वर्तमान उससे आतंकित हो रहे, भविष्य चकित हो जाय । बस, वह एक स्वप्न ही हो।" महाराज, “स्वप्न-जैसा महल ! मन्त्रिवर, लोभ को शास्त्र बुरा बताते हैं। पर मैं अपनी ओर से आपके अधीन हूँ। उस स्वप्नजैसे महल को कौन बनायेगा ?"
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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