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________________ १५२ जैनेन्द्र की कहानियाँ [तृतीय भाग ] " राजपुत्र ! कैसे राजपुत्र ?” "अभी हमारे आगे-आगे उनकी सवारी आ रही थी, राज कन्या ! सचमुच अब वह कहाँ गये ?" राजकन्या ने मुस्कराकर कहा, "कौन राजपुत्र जी ? एक तो आये थे, उनको मैंने कैद में डाल लिया है। अब वह उपद्रव नहीं करेंगे । हमारे द्वीप में उनका क्या काम, क्यों सखियो ?" इसके बाद राजकन्या उठकर अपनी किन्नरी सखियों के साथ एक-एक से गले मिली । अनन्तर वह हर प्रकार की क्रीड़ा में मग्न भाव से भाग लेने लगी, और फिर अवसाद उसके पास नहीं आया ।
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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