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________________ ( १४ ) हम हिन्दुओं में संसार की सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद की ऋचा है, "मित्रस्य चतुसा सम्यक महे" अर्थात् सबको मित्र की दृष्टि से देखो । ऐसा मित्र वन ना संभव है, अथवा असंभव है ? सोचने की बात है। यदि असंभव होता तो ऐसी बात न कही गई होती। कहा जाता है,जगत् देव असुर संग्राम है और आधनिक समय के फिलासफरों इत्यादि का कथन है कि यह जगत् हाथापाई का स्थान है। हिन्दू भी वेदों की वाणी का प्रमाण रखते हुए भी उसे देव शासुर संग्राम कहते हैं। इन सवकी दृष्टि में अहिंसक होना असंभव है। परंतु जैनधर्म ने इसको संभावित समझाकर अपने धर्म की नीव इसी पर स्थिर की । तीर्थंकरों ने इसे संभवित समझ और अपने जीवन को दिखा कर सिद्ध कर दिया कि मनुष्य अपनी पूर्व अवस्था और पूर्व गति में अहिंसक हो सकता है। श्राहसक हुए हुए विना निर्वाणपद की प्राप्ति नहीं हो सकती । अहिंसा ही न केवल निर्वाणपद की सीढ़ी है, किन्तु वह जीते जी निर्वास की अवस्था है। निर्वाण क्या है ? "फूक कर बुझा देना ।" निर (से) और वाण (फूकना)। क्या चीज़ फूंकी जाती है ? जीव में जो अजीवपना घुस गया है, उस को अलग कर देना, उस से छुटकारा पा जाना-उसको दूर कर देना यह निर्वास है। निर्वाण का अर्थ केवल इतना ही है। निर्वाण मृत्यु अथवा मर मिटने का नाम नहीं है। यह सच्चा रास्ता है; जिस में जीव जीव हो जाता है और अजीवपर्ने के सारे धन्धन जिन से
SR No.010352
Book TitleJain Dharm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivvratlal Varmman
PublisherVeer Karyalaya Bijnaur
Publication Year
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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