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________________ ( १३ ) [५] अहिंसा परमोधर्मः। जैनमन अहिंसा का मार्ग है । हिंसा' कहते हैं दुःखाने फो। किसी प्रकार का हःख देना चाहे वह कायिक हो या मानसिक हो अथवा वाचनिक हो। यह तीन प्रकार का दुःख देना'हिंसा' कहलाता है। और इन दुःखों से बचकर रहना अहिंसा' है। अदिसा शब्द का अर्थ केवल इतना ही है। कहने के लिये यह एक बात है घसीउल्मुराद, परन्तु सोचने के लिए इतना बड़ा विषय है कि उसमें वह तमाम गुण आ जाते है, जो एक पूर्ण मनुष्य में सम्मवित है, अथवा उसमें हो सक्ते हैं। यह सबसे पड़ा धर्म है । यदि यह आगया तो फिर कुछ करने धरने की आवश्यकता नहीं रहती।यहिंसा प्रेम है-अहिंसा प्रीति प्यार है-अहिंसा केवल और सच्ची भक्ति है । अहिंसक होना कठिन और दुर्लभ है। अहिंसक न किसी का शत्र है, न कोई उसका शत्रु है। वह जहां चाहे रहे । प्रेमकी मूर्ति बना हुश्रा सारे जगत् को शोभायमान करता रहेगा और जैसे सूरज से ज्योति की प्रभा की वर्षा होती रहती है, वैसे ही उससे, उसके स्वरूप से, उसकी छाया से और उसकी सांस सांस से दो दिशाओं में मंगल मानन्द और सुखकी धार हर समय बिखरती हुई संसार को स्वर्ग सरश पनाती रहती है।
SR No.010352
Book TitleJain Dharm Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivvratlal Varmman
PublisherVeer Karyalaya Bijnaur
Publication Year
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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