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________________ ( ५ ) तो कुमारी विवाहक वाद और मनिवेप लेने के बाद भी होता है । हमारे इस वक्तव्य के ऊपर आक्षेपक ने ऊपर का (3) बेहदा और अप्रामहिक श्राक्षेप किया है । खैर, उसपर हमाग कहना है कि स्त्री तो यही चाहती है कि एक ही पति के साथ जीवन व्यतीत हो जाय । परन्तु जब वह मरजाता है तो विवश होकर उसे दूसरे विवाद के लिये तैयार होना पड़ता है । विवाह के समय वह विचारी क्या बतलाए कि कितने पुरुषों से तृप्ति होगी १ वह तो एक ही पुरुष चाहती है। हाँ, यह प्रश तो उन निर्लजों से पूछो, जो कि एक तरफ तो विधवाविवाह का विरोध करते है और दूसरी तरफ जब पहिली स्त्रीको जलाने के लिये मरघट में जाते हैं तो वहीं दूसरे विवाह की चर्चा करने लगते है और इसी तरह चार चार पाँच पाँच स्त्रियाँ हडप करके कन्याकुरंगी केसरी की उपाधि प्राप्त करते है । अथवा उन धृष्ठों से पूछो जो विधवाविवाहवालों का बहिष्कार करने के लिये तो बडा गर्जन तर्जन करते हैं, परन्तु खुद एक मंत्री के रखते हुए भी दुमरी स्त्री का हाथ पकडने में लज्जित नहीं होते। देव की सतायी हुई विचारी विधवा से क्या पूछते हो ? शगचियों को भी मात करने वाली असभ्यता और कसाइयों को भी मात करने वाली करता के बल पर विचारी विधवाओं का हृदय ययों जलाते हो। चोथा प्रश्न चौथे प्रश्न के उत्तर में तो दोनों ही आक्षेपक बहुत बुरी नरह से लडखडाते है । इस प्रश्न के उत्तर में हमने कहा था कि परस्त्रीसेवन, वेश्यासेवन और बिना विवाह के पत्ती बना लेना, ये व्यभिचार की तीन श्रेणियाँ है। विधवाविवाह किसी में भी शामिल नहीं हो सकता । कुमारी भी परस्त्री है, लेकिन
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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