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________________ ( ६४ ) श्रादि किसी भी जाति का गुन्डा नौकर रख लेते है जिससे श्रीमतीजी की कामवासना शान्त होती रहती है, तथा उन के तो नहीं उनके नाम के बच्चे पैदा होते रहते है । ऐसी हालत में विप देने की भी क्या जरूरत हैं ? अगर श्रीमती जी पतिव्रता निकली तो वे विष ही क्यों देंगी? विधवाविवाह होने पर तलाक का रिवाज चलाना न चलाना अपने हाथ में है । शताब्दियों से स्त्री जाति के ऊपर हम नारकीय अत्याचार करते भारहे हैं। श्राये दिन कौटुम्विक अत्याचारों से स्त्रियों की आत्महत्या के समाचार मिलते हैं। उनके ऊपर इतने अत्याचार किये जाते है जितने पशुओं पर भी नहीं क्येि जाते । कसाई के पास जाने वाली गाय तो दस पन्द्रह मिनट कष्ट सहती है और उस समय उसे ज़्यादा नहीं तो चिल्लाने का अधिकार अवश्य रहता है। लेकिन नारीरूपी गायको तो जीवनभर यन्त्रणाएँ सहना पड़ती है और उसे चिल्लाने का भी अधिकार नहीं होता। पुरुप तो रात रातभर रडी और परस्त्रियोंक यहाँ पडा रहे, वर्षों तक अपनी पत्नीका मुंह न देखे, फिरभी अपनी पत्नीको जीवनभर गुलाम रखना चाहे, यह अन्धेर कवतक चलेगा? हमारा कहना तो यही है कि अगर पुरुष, अपने अत्याचारों का त्याग नही करता तो तलाक प्रथा जरूर चलेगी । अगर पुरुष इनका त्याग करता है तो तलाक प्रथा न चलेगी। आक्षेप (ङ)-विधवाविवाह वालों को विधवा का विवाह करके भी शङ्का लगी हुई है तो पहिले से ही विधवा से क्यों नहीं पूछलिया जाता कि तेरी तृप्ति कितने मनुष्यों से होगी? समाधान-हमने कहा था कि विधवाविवाह कोई पाप नहीं है। हॉ, विधवाविवाह के बाद कोई दूसरा (हिंसा झूठ चोरी कुशील आदि) पाप करे तो उसे पाप बन्ध होगा । सो
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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