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________________ सवेग अनुकम्पा आस्तिक्य गुण जरूर प्रकट होने चाहिये। निश्चय और व्यवहार दोनों का खयाल रखना चाहिये । व्यवहार, निश्चयका निमित्त कारण नहीं-उपादान कारण है। समाधान-सम्यग्दृष्टि में प्रशम सम्वेगादि होना चाहिये तो रहें । सम्यग्दृष्टि विधवाविवाह करते हुप भी प्रशम मम्वेग अनुकम्पा आस्तिक्यादि गुण रख सकता है। प्रशम से गग, द्वेष कम हो जाते हैं, सम्वेग से समार से भय हो जाना है। इतने परभी वह हजागे म्लेच्छ कन्याश्रोसे विवाह कर सकता है,वडे २युद्धकर सकता है और नरकम हो तो परम कृष्णा लेश्या वालारौद्रपरिणामी बनकर हजारो नारकियोंसे लडसकता है ! तवभी उस के सम्यक्त्वका नाश नहीं होता। उसके प्रशम संवे. गादि बन सकते है, तो विधवाविवाह वाले के क्यों नहीं बन सकते ? व्यवहार निश्चय का कारण है। परन्तु विधवाविवाह भी तो व्यवहार है । जिस प्रकार कुमारी विवाह धर्म से दृढ रहने का कारण है उसी प्रकार विधवाविवाह भी है। व्यवहार तो द्रव्य क्षेत्र काल भाव के भेद से अनेक भेद रूप है। व्यवहार के एक भेद से उसी के दूसरे भेद की जॉच करना व्यवहारकान्तवादी वन जाना है । निश्चय को कसौटी वना कर व्यवहार की परीक्षा करना चाहिये । जो व्यवहार निश्चय अनुकूल हो वह व्यवहार है, जो प्रतिकूल हो वह व्यवहाराभास है। विधवा-विवाह निश्चय सम्यक्त्व के अनुकूल अथवा अवि. रुद्ध है। इसलिये वह सच्चा व्यवहार है । व्यवहार सम्यक्त्व के अन्य चिन्हों के साथ भी उस का कोई विरोध नहीं है। व्यवहार को निश्चय का उपादान कारण कहना कार्य कारण भाव के ज्ञान का दिवाला निकाल देना है। व्यवहार पराश्रित है और निश्चय वाश्रित । ज्या पगश्रित, स्वाश्रित का उपादान हो सकता है ? यदि व्यवहार निश्चय का उपादान
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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