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________________ ( ३५ ) श्राप (च)-यटि विवाह शादी से मन्यव का कोई मन्यन्त्र नहीं तो क्या पारसी, अंग्रेज लेडी. यवनन्या आदि के साथ विवाह करने पर भी मम्यक्त्व का नाश नहीं होता? यदि नहीं होता तो शास्त्रों में विहित समदत्तिका क्या अर्थ होगा? समाधान - पारसी अगरेज आदिनोआर्य है. सम्यक्त्व का नाश नो छ महिनामाक माथ शादी करने परभी नहीं होना । चक्रवर्ती की ३२ हजार म्लेच्छ पत्नियों के दृष्टान्त से यह वान बिलकुल स्पष्ट है । चक्रवनियों में शालिनाथ, कुन्यु नाथ, अग्नाथ. इन तीन तीर्थदगें का भी समावेश है। अन्य अनेक जैनी गजाओं ने भी म्लेच्छ और अनार्य त्रियों के साथ विवाह किया है। हां विवाह में इननी बात का विवार यथानाध्य अवश्य करना चाहिये कि स्त्री जैन. धर्म पालने वाली हो अथवा जैनधर्म पालन गने लगे । इस से धर्मपालन में मुमोता होता है। इसीलिये समदति में साधर्मी के साथ रोटी बेटी व्यवहार का उपदेश दिया गया है । अगर कोई पारसी, अतुज या यवन महिला जैनधर्म धारण करले तो उसके साथ विवाह करने में कोई दोष नहीं है। पुराने जमाने में ना ऐसी अजैन कन्याओके माथ मी गाठी होनी थी, फिर जेनशी तो बात ही क्या है ? आचार शास्त्रों में लौक्ति और पारलौकिक श्राचार्ग का विधान रहता है। उन का पालन करना सम्यग्दृष्टि की योग्यता और इच्छा पर निर्भर है। उन श्राचार नियमों के पालन करने से सम्य. पन्त श्राता नहीं है और पालन न करनेसे जाता नहीं है। इस लिए प्राचार नियमों के अनुकूल या प्रतिकूल किसी भी महि. लास शादी करने से मम्यक्त्र का नाश नहीं होता। आक्षेप (द)-सराग सम्यक्त्व की अपेक्षा बीनगग सम्यत्त्व विशेष ग्राह है। फिर भी वीनगग सम्यक्त्वी में प्रशम
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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