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________________ ( १२ । करने की इच्छा होती है और वह कुमारी को हो होनी है। 'इली तरह पुरुषवेद के उदय मे यह नहीं कहा जा सकता कि पुरुप को कुमारी के साथ ही रमण करने की इच्छा होती हैविधवा के साथ नहीं होती। मतलब यह कि स्त्रीपुरुष वेदो. दय के कार्य में स्त्री पुरुष का होना आवश्यक है, कुमार कुमारी का होना आवश्यक नहीं है। इसीलिये गजवानिक के लक्षण के अर्थ में स्त्रोपुरुष का नाम लिया-कुमार कुमारी का नाम नहीं लिया। आक्षेप (ल)-न्त्री वेद के उदय से नो स्त्री मात्र से भोग करने की निरर्गल प्रवृत्ति होनी है। यह विवाह नहीं हैव्यभिचार है। जहाँ मर्यादा रूप कन्या पुरुप में स्वीकारता है वही विवाह है । कामसेवन के लिये दोनों बद्ध होते है । 'मैं कन्या तुम ही पुरुष से मैथुन करूंगी और मैं पुरुष तुम ही कन्या से मैथुन करूंगा ग्रह स्वीकारना किस की है? जवनक कि कुमार अवस्थामें दोनों ब्रह्मचारी हैं। यहाँ समयकी अवधि नहीं है, अतः यह कन्या पुरुष की स्वीकारता यावज्जीव है। समाधान-सिर्फ स्त्रीवेद के उदय को कोई विवाह नहीं कहता । उससे तो काम लालसा होती है । उस काम लालसा को मर्यादित करने के लिये विवाह है । इसलिये स्त्रीवेद के उदय के विना विवाह नही कहला सकना और स्त्रोवेदके उदय होने पर भी काम लालसा का मर्यादित न किया जाय तो भी विवाह नहीं कहला सकता । काम लालसा को मर्यादित करने का मतलब यह है कि संसारको समस्त स्त्रियोंसे काम लालसा हटाकर किसी एक स्त्री में नियत करना। वह स्त्री चाहे कुमारी हो या विधवा, अगर काम लालसा वहीं बद्ध हो गई है तो मर्यादा की रक्षा हो गई । सैकडी कन्याओं के साथ विवाह करते रहने पर भी काम लालसा मर्यादित कहलाती रहे और
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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