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________________ ( २०६ ) हेमकोप में भी पती शब्द का प्रपोग हुया है । 'धयां धृत नरे पतो' । यहाँ पर धव और पति शब्द का पर्यायवाची कहा है और पति शब्दका पता रूप लिखा है। व्यास स्मृति में भी पतये प्रयोग है । 'दामीवादिएकार्येषु भार्या भर्तुः सदा भवेत् । ततोन्नसाधनं कृत्वा पनयं विनिवेद्य तत् ॥ २-२७ ॥ यहाँ पतिके प्रति भाकि कर्तव्य बतलाये है । यहाँ भी सगाई वाला पति अर्थ नहीं किया जा सकता है। शशिनीव हिमाानां घर्मानानां ग्वाविव । मनोन रमते स्त्रीणां जग जीर्णेन्द्रिये पता॥ मित्रलाभ-हितोपदेश । इस श्लोक के अर्थ में अपनी निकालने की चेष्टा करके श्रीलालजी ने धोखा देने की चेष्टा की है । इतना ही नहीं यहाँ पर भी अपनी आदत के अनुसार उलटा चोर कोतवाल को डॉटे की कहावत चारतार्थ की है । आप कहते है कि 'यहाँ भी सगाई वाले (अपति) बूढ़े दूल्हे की बात है। ताज्जुब यह है कि यहीं पर यह बात भी कहते जाते है कि विवाह ती १२-१६ की उम्र में हुअा होगा । जब विवाह के समय वर की उम्र पाए १६ वतताते हैं तब क्या वह जन्म भर तो पति बना रहा और वुढापे में अपति बन गया ? बलिहारी है इस क्लाना की! खैर, ज़रा यह भी देखिये कि श्लोक किस प्रकरण का है। कौशाम्बी में चन्दनदास सेठ रहता था। उसने बुढापे में धनके बलसे लीलावती नामकी एक वणिक्पुत्री से शादी करली, परन्तु नीलावती को उस बूढे से सन्तोप न हुआ, इस. लिये वह व्यभिचारिणी होकर गुप्त पाप करने लगी । इसी मौके पर यह श्लोक कहा गया है जिसमें 'पतौ' रूप का प्रयोग ।
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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