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________________ ( २०५ ) घाला श्लोक भी उद्धन किया गया है जिनसे भी मालूम होता है कि यहाँ 'अपनों' नहीं है 'पतो' है । “अथ कथ सीताया पतये नमः" इति, 'न मृते प्रवजिने क्लीवं च पतिनं पतो। पत्रम्बापननु नारीणां पनिग्न्या विधीयते' इनि पाराशरश्च । अत्राहुः पतिरिति आख्यातः पतिः नत्कगति नटाचष्टे इनि णिचि टिलोपे अन्न इः इत्यौणादिकप्रत्यये णेरनिटि इनि णिलापे च निष्पन्नाऽयं पतिः "पनि समासः एव इत्यत्र न गृह्यते, लाक्षणिकत्वादिति"। पनि शब्द के घिसंशिक रूपों के और भी नमन मिलते हे नथा वैदिक संस्कृत में ऐम प्रयोग बहुलता से पाये जाते हे । पहिले हम यजुर्वेद के उदाहरण देते है नमो रुद्रायाननायिने क्षेत्राणां पतये नमः, नमः सूनास इन्न्य बनानां पतये नमः । १६ । १८ । इसी तरह 'कक्षाणां पनये नमः' 'पत्तीनां पतये नमः श्रादि बटुन से प्रयोग पाये जाते हैं। स्वयं पाराशर नं-जिनके श्लाफ पर यह विवाद चल रहा है-अन्यत्र भी ''तो' प्रयोग किया है । यथा जागेण जनयंदूगर्भ मृत त्यक्त गते पतो। नां त्यजेदपर राष्ट्र पनितां पापकारिणीम् ॥ १०-३१ ॥ अर्थात् पति के मर जाने पर या पनि स छोडी जाने पर जो स्त्री व्यभिचार से गर्भ धारण करे उस पापिनी को देश में निकाल देना चाहिये । अर्थात् पागशरजी यह नहीं चाहते कि कोई स्त्री व्यभिचार करे। विधवा या पतिहीन स्त्री का कर्त. न्य है कि वह पुनर्विवाह करले या ब्रह्मचर्य से रहे, परन्तु व्यभिचार कमी न करे । जा स्त्रियाँ ऊपर से ना विधवाविगाहको या उनके प्रचारकों को गालियाँ देती और भीतर ही भीतर व्यभिचार करती है वे सचमुच महापापिनी है।
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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