SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ लगे रहते हैं । राजा लोगों का राज्य भी इसीलिए गया और यह शासन भी ऐसी ही वातों से अप्रिय होगया है । अनाज अनाज पुकारा जाता है परन्तु कृषकों को सेना आदि अन्यान्य कामों में लगाया जारहा है। पहले कृषक, कृषि के अतिरिक्त दूसरा काम भी नहीं करते थे । आज तो शत्रु देश में आग भी लगाई जाती है । श्रणुत्रम हाईड्रोजन बम सरीखे प्रलयकारी शस्त्रास्त्रों का निर्माण कर निरीह जनता को भी नष्ट किया जाता है । कितना सुन्दर समय था ? परन्तु आज वैसा समय न चाहा जाकर आने वाले महा भयंकर समय का आगे होकर स्वागत किया जाता है । इसी से त कहना पड़ता है कि ' विनाश काले विपरीत बुद्धि: " - -- A. 'मेगास्थिनीस एक श्रागन्तुक के नाते आया, थोड़े दिन रहा होगा ? यहाँ की भाषा भी नहीं जानता था तो भी उस उक्त . अभिप्राय, बाले लेखो से सुस्पष्ट हो जाता है कि उस समय अर्थात् आज से २३०० वर्ष पूर्व यहां जाति भेद था और विजाति विवाह तथा वर्ण वृत्ति सांकय तक सर्वथा निषिद्ध था । यह बात तो हुई २३०० वर्ष पहले की । ईसा की सातवीं शताब्दी अर्थात् श्राज से १३०० वर्ष पूर्व चीनी परिव्राजक होन सांग नामक जो सम्भवतः बौद्ध धर्मी था और भारत में उसने बहुत समय तक निवास किया उसने अपने भारतेतिवृत्त में लिख है कि
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy