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________________ उस पर यहां के निवासी लोग कोई उपद्रव करना अनुचित समझते हैं। पड़ोस में युद्ध चलता रहता है परन्तु किसान बिना किसी बाधा विपति के अपना काम करते रहते हैं। दोनों पक्षों के सैनिक परस्पर रक्तपात करते हुये भी खेती में लगे हुये लोगों को किसी प्रकार भो सताना नहीं चाहते । इसके अतिरिक्त वे शत्रुओं के देश में भी कभी श्राग नहीं लगाते और न वृक्षों को ही कादते हैं" मेगास्थिनीस के इस २३०० वर्ष पहले के कथन से स्पष्टतः विदित होता है कि भारत की कैसी सुदशा थी। भारत में विजाति विवाह नहीं होता था। वर्णसंकरता और कर्मसंकरता भी नहीं थी। सब अपने २ नियत काम करते थे। गजा लोग प्रतिसमय प्रजाजनों की पुकार सुनने में रक्त रहते थे। युद्धार्थी युद्धार्थी ही आपस में लड़ते थे । अन्य प्रजा का विनाश नहीं करते थे। शत्रु देश में भी आग नहीं लगाते थे। आग लगाना तो दूर, वृक्ष तक भों नहीं काटते थे। आज के और पहले के भारत में बड़ा फर्क होगया । अाज तो विजाति विवाह न करने वाले और उच्छिष्ट न लाने वाले को संकीण और दकियानूसी समझा जाने लगा है। राजा लोगों तक प्रजा के लोग पहुंचने तक नहीं पाते थे, व मौज मजे में ही मस्त रहते थे । वर्तमान शासक भी माषणों, मानपत्रों एवं अपनी कुसियों के संरक्षण तथा अधिक बोट मिलने की उधेड़-बुन में
SR No.010348
Book TitleJain Dharm aur Jatibhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndralal Shastri
PublisherMishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh
Publication Year
Total Pages95
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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