SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ जैनधर्म उन्नति थी क्योंकि खुदाई में तीर्थकरोंकी कई मूर्तियाँ जिनपर संवत् १११२ से ११३३ तक खुदा है यहाँ प्राप्त हुई हैं । सुहृद्ध्वज श्रावस्तीके जैन राजाओंमें अन्तिम राजा था । यह महमूद गजनीके समयमें हुआ था । तीर्थस्थान है । राजा हो गया बरेली जिलेमें अहिच्छत्र नामका एक जैन इस पर राज्य करनेवाला एक मोरध्वज नामका हैं जो जैन बतलाया जाता है । यहाँ किसी समय जैनधर्म की बहुत उन्नति थी । यहाँ अनेक खेड़े हैं जिनसे जैनमूर्तियाँ मिली हैं । इसी तरह इटावासे उत्तर दक्षिण २७ मीलपर परवा नामका एक स्थान है जहाँ जैनमन्दिरके ध्वंस पाये जाते हैं। डॉ० फुहरर का कहना है कि किसी समय यहाँ जैनियोंका प्रसिद्ध नगर आलभी बसा था । ग्वालियर के किलेमें विशाल जैनमूर्तियोंकी बहुतायत वहाँके प्राचीन राजघरानोंका जैनधर्म से सम्बन्ध सूचित करती है । इस प्रकार उत्तर भारतमें जैन राजाओं का उल्लेखनीय बता न चलने पर भी अनेक राजाओंका जैनधर्मसे सहयोग सूचित होता है और पता चलता है कि महावीरके पश्चात् उत्तर भारत में भी जैनधर्म खूब फूला फला । ८. दक्षिण भारतमें जैनधर्म उत्तर भारतमें जैनधर्मकी स्थितिका दर्शन करानेके पश्चात् दक्षिण भारतमें आते हैं । चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में उत्तर भारत में १२ वर्षका भयंकर दुर्भिक्ष पड़नेपर जैनाचार्य भद्रबाहुने अपने विशाल जैनसंघके साथ दक्षिण भारतकी ओर प्रयाण किया था। इससे स्पष्ट है कि दक्षिण भारतमें उस समय भी जैनधर्मका अच्छा प्रचार था और भद्रबाहुको पूर्ण विश्वास था कि वहाँ उनके संघको किसी प्रकारका कष्ट न होगा । यदि ऐसा न होता तो वे इतने बड़े संघको दक्षिण भारतकी ओर ले जानेका साहस
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy