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________________ ४५ इतिहास 'यह स्तूप इतना प्राचीन है कि इस लेखके लिखे जानेके समय स्तूपका आदि वृत्तान्त लोगोंको विस्मृत हो चुका था। असलमें उत्तर प्रदेशमें जैनधर्मका इतिहास अभी तक अन्धकार में है। इसलिये उत्तर प्रदेशके राजाओंका जैनधर्मके साथ कैसा सम्बन्ध था यह स्पष्ट रूपसे नहीं कहा जा सकता। फिर भी उत्तर प्रदेशमें सर्वत्र जो जैन पुरातत्त्वकी सामग्री मिलती है उससे यह पता चलता है कि कभी यहाँ भी जैनधर्मका अच्छा अभ्युदय था, और अनेक राजाओंने उसे आश्रय दिया था। उदाहरणके लिये हर्षवर्द्धन बड़ा प्रतापी राजा था। लगभग समस्त उत्तर प्रदेशमें उसका राज्य था। इसने पाँच वर्ष तक प्रयागमें धार्मिक महोत्सव कराया। उसमें उसने जैनधर्मके धार्मिक पुरुषोंका भी आदर सत्कार किया था। जो राजा जैनधर्मका पालन नहीं करते थे, किन्तु जैनधर्मके मार्गमें बाधा भी नहीं देते थे, ऐसे धर्मसहिष्णु राजाओंके कालमें जैनधर्मकी खूब उन्नति हुई। समग्र उत्तर और मध्य भारतके सभी प्रदेशोंमें पाये जानेवाले जैनधर्मके चिह्न इसके साक्षी हैं। उत्तर प्रदेशके जिन जिलोंमें आज नाममात्रको जैनी रह गये हैं उनमें भी प्राचीन जैन चिह्न पाये जाते हैं। उदाहरणके लिये गोरखपुर जिलेमें तहसील देवरियामें कुहाऊँ, व खुखुन्दोके नाम उल्लेखनीय हैं। इलाहाबादसे दक्षिण पश्चिम ११ मीलपर देवरिया और भीतामें बहुतसे पुरातन खण्डित स्थान हैं। कनिंग्घम सा० का कहना है कि यहाँ जादोवंशके उदयन राजा रहते थे, जो जैनधर्म पालते थे। उन्होंने श्री महावीर स्वामीकी एक प्रसिद्ध मूर्तिका निर्माण कराया था, जिसे लेनेके लिए उज्जैन के राजा और उदयनसे एक बड़ा युद्ध हुआ था। बलरामपुर ( अवध ) से पश्चिम १२ मीलपर 'सहेठ महेठ' नामका स्थान है। यहाँ खुदाई की गई थी। यह स्थान ही श्रावस्ती नगरी है। इसके सम्बन्धमें डॉ० फुहररने अपनी रिपोर्टमें लिखा है कि ११ वीं शताब्दीमें श्रावस्तीमें जैनधर्मकी बहुत
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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