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________________ ४४ जैनधर्म कलचुरी राजधानी त्रिपुरी और रतनपुर में अब भी अनेक प्राचीन जैन मूर्तियाँ और खण्डहर विद्यमान हैं। __ इस प्रान्तमें जैनोंके अनेक तीर्थ हैं-बैतूल जिलेमें मुक्तागिरि, सागर जिलेमें दमोहके पास कुण्डलपुर और निमाड़ जिलेमें सिद्धवर क्षेत्र अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिये भी प्रसिद्ध हैं। भलसाक समीपका 'वीसनगर' जैनियोंका बहुत प्राचीन स्थान है । शीतलनाथ तीर्थङ्करकी जन्मभूमि होनेसे वह अतिशय क्षेत्र माना जाता है। जनग्रन्थोंमें इसका नाम भद्दलपुर पाया जाना है। बुन्देलखण्डमें भी अनेक जैनतीर्थ हैं जिनमें, सोनागिर, देवगढ़, नयनागिर और द्रोणगिरिका नाम उल्लेखनीय है। खजुराहाके प्रसिद्ध जैनमन्दिर आज भी दर्शनार्थियोंको आकृष्ट करते हैं। सतरहवीं शताब्दीसे यहाँ जैनधर्मका ह्रास होना आरम्भ हुआ । जहाँ किसी समय लाखों जैनी थे वहाँ अब जैनधर्मका पता जैन मन्दिरोंके खण्डहरों और टूटी-फूटी जैन मूर्तियोंसे चलता है। ७. उत्तरप्रदेशमें जैनधर्म उत्तर प्रदेशमें जैनधर्मका केन्द्र होनेको दृष्टिसे मथुराका नाम उल्लेखनीय है । यहाँके कंकाली टोलेसे जो लेख प्राप्त हुए हैं वे ई० पू० री शताब्दीसे लेकर ई० स० ५वीं शताब्दी तकके हैं, और इस तरह ये बहुत प्राचीन हैं। इनसे पता चलता है कि इतने सुदीर्घ काल तक मथुरा नगरी जैनधर्मका प्रधान केन्द्र थी। जैनधर्मके इतिहासपर इन शिलालेखोंसे स्पष्ट प्रकाश पड़ता है। इनसे पता चलता है कि जैनधर्मके सिद्धान्त और उसकी व्यवस्था अति प्राचीन है। यहाँके प्राचीनतम शिलालेखसे भी यहाँका स्तूप कई शताब्दी पुराना है इसके सम्बन्धमें फुहरर सा० 'लिखते है १. म्यूजियम रिपोर्ट, १८६०-६१ ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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