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________________ इतिहास अपेक्षा जैनोंसे अधिक मिलते हैं। जैसे, बहुतसे पक्षियों और चौपायोंका, जो कि न भोगमें आते हैं न खाये जाते हैं, मारना वर्जित करना, केवल अनर्थ और विहिंसाके लिये जंगलोंको जलानेका निषेध करना और कुछ खास तिथियों और पर्वोपर जीवहिंसाको बन्द कर देना आदि। प्रो० कर्नलने, जो बौद्धशास्त्रोंके बहुत बड़े अधिकारी विद्वान् माने जाते रहे हैं यह स्वीकार किया है कि अशोककी राज्यनीतिमें बौद्धप्रभाव खोजने पर भी नहीं मिलता। उसकी घोपणाएँ, जो मितव्ययी जीवनसे सम्बद्ध हैं-बौद्धोंकी अपेक्षा जैन विचारोंसे अत्यधिक मेल खाती है। सम्राट सम्पति ( ई० पू० २२० ) 'सम्प्रति अशोकका पौत्र था। इसे जैनाचार्य सुहस्तीने उज्जैनमें जैनधर्मकी दीक्षा दी थी। उसके बाद सम्प्रतिने 'जैनधर्मके लिए वही काम किया जो अशोकने बौद्धधर्मके लिए किया । उत्तर पश्चिमके अनार्यदेशोंमें भी सम्प्रतिने जैनधर्मके प्रचारक भेजे और वहाँ जैन साधुओंके लिए अनेक विहार स्थापित किये। अशोककी तरह उसने भी अनेक इमारतें बनवाई । राजपूतानाकी कई जैन रचनाएँ उसीके समयकी कही जाती हैं। कुछ विद्वानोंका मत है कि जो शिलालेख अब अशोकके नामसे प्रसिद्ध हैं, सम्भवतः वे सम्प्रतिने लिखवाये थे। १. देखो-भारतीय इतिहासको रूपरेखा, पृ० ६१६ ।। जिनप्रभ सूरिने पाटलिपुत्र कल्पग्रन्थमें एक स्थानपर लिखा है"कुणालसूनुस्त्रिखण्डभरताधिपः परमाहतो अनार्यदेशेष्वपि प्रवर्तितश्रमणविहारः सम्प्रति महाराजाऽसौ अभवत् ।" इनका भाव यह है कि कुणालका पुत्र महाराज सम्प्रति हुआ, जो भारतके तीन खण्डोंका स्वामी था, अर्हन्त भगवानका भक्त-जैन था और जिसने अनार्य देशोंमें भी श्रमणों-जैन मुनियोंका विहार कराया था।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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