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________________ जैनधर्म इस प्रकार महावीर स्वामीसे लेकर चार सौ वर्ष तक जैनधर्मी राजा श्रेणिक और महाराज चन्द्रगुप्त मौर्य तथा उनकी सन्तानोंके समयमें भारत और उसके बाहर भी जैनधर्मका खूब प्रचार रहा। इसके बाद मौर्य सम्राज्यका ह्रास होना प्रारम्भ हुआ और उसके अन्तिम सम्राट् बृहद्रथको उसके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्रने मारकर राजदण्ड अपने हाथमें ले लिया । इसने श्रमणोंपर बड़ा अत्याचार किया। उनके विहार और स्तूप नष्ट कर दिये। २. उड़ीसा में जैनधर्म कलिंग चक्रवर्ती खारवेल ( ई० पू० १७४) कलिंगमें बहुत प्राचीन कालसे जैनधर्मकी प्रवृत्ति थी। ई० पू० ४२४ के लगभग मगधसमम्राट् नन्द कलिंगको जीतकर वहाँसे प्रथम जिनकी मूर्ति मगध ले गया था। सम्राट् सम्प्रति के समय वहाँ चेदिवंशका पुनः राज्य हुआ, इसी वंशका प्रसिद्ध सम्राट् खारवेल था। कलिंग चक्रवर्ती महाराजा खारवेलको उस युगकी राजनीतिमें सबसे अधिक महत्त्वका व्यक्ति माना जाता है। इनके हाथीगुम्फामें पाये गये शिलालेखका उल्लेख पहले किया गया है । उस लेखके अनुसार खारवेल जैन था। बल्कि उड़ीसाका सारा राष्ट्र उस समय जैन ही था। स्व० के० पी० जायसवाल लिखते हैं____ 'जैनधर्मका प्रवेश उड़ीसामें शिशुनागवंशी राजा नन्दवर्धनके समयमें हो गया था। खारवेलके समयसे पूर्व भी उदयगिरि पर्वतपर अर्हन्तोंके मन्दिर थे, क्योंकि उनका उल्लेख खारवेलके लेखमें आया है। ऐसा प्रतीत होता है कि खारवेलके १. देखो-भारतीय इतिहासकी रूपरेखा, पृ० ७१५ २. ज. वि० उ० रि० सो० जिल्द ३, पृ० ४४८ ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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