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________________ जैनधर्म प्रायः मुख्य-मुख्य बातोंमें यथार्थ है और चन्द्रगुप्त सचमुच राज्य त्यागकर जैन मुनि हुए थे। स्व० के० पी० जायसवालने लिखा है 'कोई कारण नहीं हैं कि हम जैनियोंके इस कथनको कि चन्द्रगुप्त अपने राज्यके अन्तिम दिनोंमें जैन हो गया था और पीछे राज्य छोड़कर जिन दीक्षा ले मुनिवृत्तिसे मरणको प्राप्त हुआ, न माने । मैं पहला ही व्यक्ति यह माननेवाला नहीं हूँ। मि. राईसने, जिन्होंने श्रवणबेलगोलाके शिलालेखोंका अध्ययन किया है, पूर्ण रूपसे अपनी सम्मिति इसी पक्ष में दी है। और मि० वि० स्मिथ भी अन्तमें इसी मतकी ओर झुके हैं। सम्राट अशोक ( ई० पृ० २७७) सम्राट अशोक चन्द्रगुप्त मौर्यका पौत्र था। जैन ग्रन्थों में इसके जैन होनेके प्रमाण मिलते हैं। कुछ विद्वानोंका मत है कि अशोक पहले जैनधर्मका उपासक था. पीछे बौद्ध हो गया । इसमें एक प्रमाण यह दिया जाता है कि अशोकके उन लेखोंमें जिनमें उसके स्पष्टनः बौद्ध होनेके कोई संकेन नहीं पाये जाते, बल्कि जैन सिद्धान्तोंके ही भावांका आधिक्य है, राजाका उपनाम 'देवानांपिय पियदसी' पाया जाता है । 'देवनांपिय' विशेपतः जैनग्रन्थों में ही राजाकी उपाधि पाई जाती है। पर अशोकके २वें वर्षकी भावराकी प्रशस्तिमें, जिसमें उसके बौद्ध होनेके स्पष्ट प्रमाण हैं ; उसकी पदवी केवल 'पियदसि' पाई जाती है, 'देवानां पिय' नहीं। इसी बीचमें वह जैनसे बौद्ध हुआ होगा। विद्वानोंका यह भी मत है कि अशोकने अहिंसाके विषयमें जो नियम प्रचारित किये थे वे बौद्धोंकी १. जर्नल आफ दी विहार उड़ीसा रिसर्च सोसायटी, जिल्द ३ । २. इण्डियन एण्टीक्वेरी, जिल्द ५ में। ३. 'अरली फेथ ऑफ़ अशोक ।'
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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