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________________ ३३८ जैनधर्म ध्यानस्थ थे । लौटते हुए मार्गमें एक मुनिसे मंत्रियोंका शास्त्रार्थ हो गया। मंत्री पराजित हो गये। क्रुद्ध मंत्री रात्रिमें तलवार लेकर मुनियोंको मारनेके लिये निकले। मार्गमें गुरुकी आज्ञासे उसी शास्त्रार्थके स्थानपर ध्यानमें मग्न अपने प्रतिद्वन्द्वी मुनिको देखकर मंत्रियोंने उनपर वार करनेके लिये जैसे ही तलवार ऊपर उठाई, उनके हाथ ज्योंके त्यों रह गये। दिन निकलनेपर राजाने मंत्रियोंको देशसे निकाल दिया। चारों मंत्री अपमानित होकर हस्तिनापुरके राजा पद्मकी शरणमें आये। वहाँ बलिने कौशलसे पद्म राजाके एक शत्रुको पकड़ कर उसके सुपुर्द कर दिया। पद्मने प्रसन्न होकर मुँहमाँगा वरदान दिया । बलिने समयपर वरदान माँगनेके लिये कह दिया। कुछ समय बाद मुनि अकम्पनाचार्यका संघ विहार करता हुआ हस्तिनापुर आया और उसने वहीं वर्षावास करना तय किया । जब बलि वगैरहको इस बातका पता चला तो वे वहुत घबराये, पीछे उन्हें अपने अपमानका बदला चुकानेकी युक्ति सूझ गई। उन्होंने वरदानका स्मरण दिलाकर राजा पद्मसे सात दिनका राज्य माँग लिया । राज्य पाकर वलिने मुनिसंघके चारों ओर एक बाड़ा खड़ा करा दिया और उसके अन्दर पुरुषमेध यज्ञ करनेका प्रबन्ध किया। ___ इधर मुनियोंपर यह उपसर्ग प्रारम्भ हुआ उधर मिथिला नगरीमें वर्तमान एक निमित्तज्ञानी मुनिको इस उपसर्गका पता लग गया। उनके मुँह से 'हा हा' निकला। पासमें वर्तमान एक क्षुल्लकने इसका कारण पूछा तो उन्होंने सब हाल बतलाया और कहा कि विष्णुकुमार मुनिको विक्रिया ऋद्धि उत्पन्न हो गई है वे इस संकटको दूर कर सकते हैं । क्षुल्लक तत्काल मुनि विष्णुकुमारके पास गये और उनको सब समाचार सुनाया। विष्णुकुमार मुनि हस्तिनापुरके राजा पद्मके भाई थे। वे तुरन्त अपने भाई पद्मके पास पहुंचे और बोले- पद्मराज! तुमने यह क्या कर रखा है ? कुरुवंशमें ऐसा अनर्थ कभी नहीं हुआ । यदि
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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