SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ विविध ३३७ आयोजन केवल इसी दिन होता है। इससे घर घर में उस दिन जो मिष्टान्न बनता है उसका उद्देश्य भी समझमें आ जाता है । सलूनो या रक्षाबन्धन दूसरा उल्लेखनीय सार्वजनिक त्यौहार, जिसे जैनी मनाते हैं, सलूनो या रक्षाबन्धन पर्व है । साधारणतः इस त्यौहारके दिन घरों में सीमियाँ बनती हैं और ब्राह्मण लोग लोगोंके हाथोंमें राखियाँ, जिन्हें रक्षाबन्धन कहते हैं, बाँधकर दक्षिणा लेते हैं । राखी बाँधते समय वे एक श्लोक पढ़ते हैं जिसका भाव यह है - 'जिस राखीसे दानवोंका इन्द्र महाबलि बलिराजा बाँधा गया उससे मैं तुम्हें भी बाँधता हूँ मेरी रक्षा करो और उससे डिगना नहीं ।' 1 साथ ही साथ उत्तर भारतमें एक प्रथा और है । उस दिन हिन्दू मात्रके द्वारपर दोनों ओर मनुष्यके चित्र बनाये जाते हैं। उन्हें 'सोन' कहते हैं। पहले उन्हें जिमाकर उनके राखी बाँधी जाती है तब घरके लोग भोजन करते हैं । हमने अनेकों विद्वानों और पौराणिकांसे इस त्यौहारके बारेमें जानना चाहा कि यह कब कैसे चला किन्तु किसीसे भी कोई बात ज्ञात नहीं हो सकी । बलि राजाकी कथा वामनावतार के सिलसिले में आती है, किन्तु, उससे इस पर्व के बारेमें कुछ भी ज्ञात नहीं होता । जैनपुराणों में अवश्य एक कथा मिलती हैं जो संक्षेपमें इस प्रकार है किसी समय उज्जैनी नगरी में श्रीधर्म नामका राजा राज्य करता था। उसके चार मंत्री थे - बलि, बृहस्पति, नमुचि और प्रहलाद | एक बार जैनमुनि अकम्पनाचार्य सात सौ मुनियोंके संघके साथ उज्जैनीमें पधारे। मंत्रियोंके मना करनेपर भी राजा मुनियोंके दर्शनके लिये गया। उस समय सब मुनि १. 'येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबली । तेन त्वामपि बध्नामि रक्ष मा चल मा चल ॥'
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy