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________________ विविध ३३६ राजा ही तपस्वियोंपर अनर्थ करने लगे तो उसे कौन दूर कर सकेगा ? यदि जल ही आगको भड़काने लगे तो फिर उसे कौन बुझा सकेगा ।' उत्तर में पद्मने बलिको राज्य दे देनेका सब समाचार सुनाया और कुछ कर सकनेमें अपनी असमर्थता प्रकट की। तब विष्णुकुमार मुनि वामनरूप धारण करके बलिके यज्ञमें पहुँचे और बलिके प्रार्थना करनेपर तीन पैर धरती उससे माँगी । जब बलिने दानका संकल्प कर दिया तो विष्णुकुमारने विक्रिया ऋद्धिके द्वारा अपने शरीरको बढ़ाया। उन्होंने अपना पहला पैर सुमेरु पर्वतपर रखा, दूसरा पैर मानुषोत्तर पर्वतपर रखा, और तीसरा पैर स्थान न होनेसे आकाशमें डोलने लगा । तब सर्वत्र हाहाकार मच गया, देवता दौड़ पड़े और उन्होंने विष्णुकुमार मुनि से प्रार्थना की 'भगवन्! अपनी इस विक्रियाको समेटिये । आपके तपके प्रभावसे तीनों लोक चंचल हो उठे हैं । तब उन्होंने अपनी विक्रियाको समेटा । मुनियोंका उपसर्ग दूर हुआ और बलिको देशसे निकाल दिया गया । बलिके अत्याचारसे सर्वत्र हाहाकार मच गया था और लोगोंने यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि जब मुनियोंका संकट दूर होगा तो उन्हें आहार कराकर ही भोजन ग्रहण करेंगे । संकट दूर होनेपर सब लोगोंने दूधकी सीमियोंका हल्का भोजन तैयार किया; क्योंकि मुनि कई दिनके उपवासे थे । मुनि केवल सात सौ थे अतः वे केवल सात सौ घरोंपर ही पहुँच सकते थे । इसलिए शेष घरोंमें उनकी प्रतिकृति बनाकर और उसे आहार देकर प्रतिज्ञा पूरी की गई। सबने परस्परमें रक्षा करनेका बन्धन बाँधा, जिसकी स्मृति त्यौहार के रूपमें अबतक चली आती है। दीवारोंपर जो चित्र रचना की जाती है उसे ''सौन' कहा जाता है, यह 'सौन' शब्द १. श्री वासुदेवशरण अग्रवालने हमें बताया है कि 'सोन' शब्द शकुनिका अपभ्रंश है जिसका अर्थ होता है गरुड़ पक्षी । श्रावण मासमें नाग
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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