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________________ विविध ३३३ गृही नगरीके विपुलाचल पर्वतपर प्रातःकाल के समय हुई थी । उसीके उपलक्ष में प्रतिवर्ष श्रावण कृष्णा प्रतिपदाको वीर शासन जयन्ती मनाई जाती है । गत वि० सं० २००१ में पहले राजगृहमें और बादको कलकत्ता में अढ़ाई हजारवाँ वीर शासन महोत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया गया । श्रुत पञ्चमी दिगम्बर सम्प्रदाय में धीरे-धीरे जब अंग ज्ञान लुप्त हो गया तो अंगों और पूर्वोके एक देशके ज्ञाता आचार्य धरसेन हुए । वे सोरठ देशके गिरनार पर्वतकी चन्द्रगुफा में ध्यान करते थे । उन्हें इस बात की चिन्ता हुई कि उनके बाद श्रुत ज्ञानका लोप हो जायेगा, अतः उन्होंने महिमा नगरी में होनेवाले मुनि सम्मेलनको पत्र लिखा, जिसके फलस्वरूप वहाँसे दो मुनि उनके पास पहुँचे । आचार्यने उनकी बुद्धिकी परीक्षा करके उन्हें सिद्धान्त पढ़ाया और बिदा कर दिया । उन दोनों मुनियोंका नाम पुष्पदन्त और भूतबलि था । उन्होंने वहाँसे आकर षट्खण्डागम नामक सिद्धान्त ग्रन्थकी रचना की । रचना हो जानेपर भूतबलि आचार्यने उसे पुस्तकारूढ़ करके ज्येष्ठ शुक्ला पंचमीके दिन चतुर्विध संघके साथ उसकी पूजा की, जिससे श्रुतपञ्चमी तिथि दि० जैनियोंमें प्रख्यात हो गई । उस तिथिको वे शास्त्रोंकी पूजा करते हैं। उनकी देख-भाल करते हैं, धूल तथा जीवजन्तुसे उनकी सफाई करते हैं। श्वेताम्बरों में कार्तिक सुदी पंचमीको ज्ञानपंचमी माना जाता है । उस दिन वे धर्मग्रन्थोंकी पूजा तथा सफाई वगैरह करते हैं । १. " ज्येष्ठसितपक्षपञ्चम्यां चातुर्वण्यसंघसमवेतः । तत्पुस्तकोपकरणैर्व्यधात् क्रियापूर्वकं पूजाम् ॥१४३॥ श्रुतपञ्चमीति तेन प्रख्याति तिथिरयं परामाप । अद्यापि येन तस्यां श्रुतपूजां कुर्वते जैनाः || १४४॥।” इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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