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________________ ३३४ जैनधर्म ___उक्त पर्वो के सिवा प्रत्येक तीर्थकरके गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाणके दिन कल्याण क दिन कहे जाते हैं। उन दिनोंमें भी जगह जगह उत्सव मनाये जाते हैं । जैसे अनेक जगह प्रथम तीर्थकर ऋषभदेवकी ज्ञान जयन्ती या निर्वाणतिथि मनाई जाती है। दीपावली ऊपर जो जैन पर्व बतलाये गये हैं वे ऐसे हैं जिन्हें केवल जैन धर्मानुयायी ही मनाते हैं। इनके सिवा कुछ पर्व ऐसे भी हैं जिन्हें जैनोंके सिवा हिन्दू जनता भी मनाती है। ऐसे पर्वोमें सबसे अधिक उल्लेखनीय दीपावली या दिवालीका पर्व है। यह पर्व कार्तिक मासकी अमावस्याको मनाया जाता है । साफ सुथरे मकान कार्तिकी अमावस्याकी सन्ध्याको दीपोंके प्रकाशसे जगमगा उठते हैं । घर-घर लक्ष्मीका पूजन होता है। सदियोंसे यह त्यौहार मनाया जाता है, किन्तु किसीको इसका पता नहीं है कि यह त्यौहार कब चला, क्यों चला और किसने चलाया ? कोई इसका सम्बन्ध रामचन्द्रजीके अयोध्या लौटनेसे लगाते हैं। कोई इसे सम्राट अशोककी दिग्विजयका सूचक बतलाते हैं। किन्तु रामायणमें इस तरहका कोई उल्लेख नहीं मिलता है, इतना ही नहीं, किन्तु किसी हिन्दू पुराण वगैरहमें भी इस सम्बन्धमें कोई उल्लेख नहीं मिलता। बौद्धधर्म में तो यह त्योहार १. श्री वासुदेवशरण अग्रवालने हमें सुझाया है कि वात्स्यायन कामसूत्रमें दीपावलीको यक्षरात्रि महोत्सव कहा गया है। तथा बौद्धोंके 'पुप्फरत्त' जातकमें कार्तिककी रात्रिको होने वाले उत्सवका वर्णन है इसी प्रकार कार्तिकको पौर्णमासीको होने वाले उत्सवका वर्णन 'धम्मपद अट्ठकथा' में पाया जाता है । इन उल्लेखोंसे इतना ही पता चलता है कि कार्तिकमें रात्रिके समय कोई उत्सव मनाया जाता रहा है । किन्तु वह क्यों मनाया जाता है तथा उसका रूप क्या था, इसका पता नहीं चलता। ले० ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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