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________________ ३३२ जैनधर्म याचना की जाती है। इस पर्वका सन्मान मुगल बादशाह भी करते थे । सम्राट् अकबरने जैनाचार्य हीरविजय सूरिके उपदेशसे प्रभावित होकर पर्युषण पर्व में हिंसा बन्द रखनेका फर्मान अपने साम्राज्य में जारी किया था । अटान्हिका पर्व दिगम्बर सम्प्रदायका दूसरा महत्त्वपूर्ण पर्व अष्टाह्निका पर्व है । यह पर्व कार्तिक, फाल्गुन और आसाढ़ मास के अन्तके आठ दिनों में मनाया जाता है। जैन मान्यताके अनुसार इस पृथ्वीपर आठवाँ नन्दीश्वरद्वीप है । उस द्वीपमें ५२ जिनालय बने हुए हैं। उनकी पूजा करनेके लिये स्वर्गसे देवगण उक्त दिनों में जाते हैं । चूँकि मनुष्य वहाँ तक जा नहीं सकते इसलिये वे उक्त दिनोंमें पर्व मनाकर यहीं पर पूजा कर लेते हैं । इन्हीं दिनों में सिद्धचक्र पूजा विधानका आयोजन किया जाता है । यह पूजा महोत्सव दर्शनीय होता है । श्वेताम्बरों में भी पर्युषणके बाद सबसे महत्त्वका जैन पर्व सिद्धचक्र पूजा विधान ही है। किन्तु उनमें यह पूजा वर्ष में दो बार चैत्र और आसौजमें होती है और सप्तमीसे पूनम तक ९ दिन चलती है । महावीर जयन्ती चैत्र शुक्ला त्रयोदशी भगवान् महावीरकी जन्मतिथि है । इस दिन भारतवर्षके सभी जैन अपना कारोबार बन्द रखकर अपने-अपने स्थानोंपर बड़ी धूम-धामसे महावीरकी जयन्ती मनाते हैं । प्रातःकाल जलूस निकालते हैं और रात्रिमें सार्वजनिक सभाका आयोजन होता है । भारत भर में बहुत-सी प्रान्तीय सरकारोंने अपने प्रान्तमें महावीर जयन्तीकी छुट्टी घोषित कर दी है। केन्द्रीय सरकारसे भी जैनोंकी यही माँग है। वीरशासन जयन्ती जैनोंके अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान् महावीरको पूर्ण ज्ञानकी प्राप्ति हो जानेपर उनकी सबसे पहली धर्मदेशना मगधकी राज
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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