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________________ विविष ३३१ भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी अनन्त चतुर्दशी कहलाती है। इसका जैनों में बड़ा महत्त्व है । जैनशास्त्रोंके अनुसार इस दिन व्रत करनेसे बड़ा लाभ होता है। दूसरे, यह दशलक्षण पर्वका अन्तिम दिन भी है, इसलिये इस दिन प्रायः सभी जैन स्त्रीपुरुष व्रत रखते हैं और तमाम दिन मन्दिरमें ही बिताते हैं। अनेक स्थानोंपर इस दिन जलूस भी निकलता है। कुछ लोग इन्द्र बनकर जलूसके साथ जल लाते हैं और उस जलसे भगवान्का अभिषेक करते हैं। फिर पूजन होता है और पूजनके बाद अनन्त चतुर्दशीव्रतकथा होती है। जो व्रती निर्जल उपवास नहीं करते वे कथा सुनकर ही जल ग्रहण करते हैं। ___ श्वेताम्बर सम्प्रदायमें इसे 'पर्युषण' कहते हैं। साधुओंके लिये दस प्रकारका कल्प यानी आचार कहा है उसमें एक 'पर्युषणा' है। 'परि' अर्थात् पूर्ण रूपसे, उपणा अर्थात वसना । अर्थात् एक स्थान पर स्थिर रूपसे वास करनेको पर्युपणा कहते हैं। उसका दिनमान तीन प्रकारका है। कमसे कम ७० दिन, अधिकसे अधिक ६ मास और मध्यम ४ मास । कमसे कम ७० दिनके स्थिरवासका प्रारम्भ भाद्रपद सुदी पञ्चमीसे होता है । पहले यही परसरा प्रचलित थी किन्तु कहा जाता है कि कालिकाचार्यने चौथकी परस्परा चालू की। उस दिनको 'संवछरी' यानी सांवत्सरिक पर्व कहते है। सांवत्सरिक पर्व अर्थात् त्यागी साधुओंके वर्षावास निश्चित करनेका दिन । सांवत्सरिक पर्वको केन्द्र मानकर उसके साथ उससे पहलेके सातदिन मिलकर भाद्रपद कृष्ण १२ से शुक्ला चौथतक आठ दिन श्वेताम्बर सम्प्रदायमें 'पर्युषण' कहे जाते हैं। दिगम्बर सम्प्रदायमें आठके बदले दस दिन माने जाते हैं। और श्वेताम्बरोंके पर्युषण पूरा होनेके दूसरे दिनसे दिगम्बरोंका दशलाक्षणी पर्व प्रारम्भ होता है। सांवत्सरिक पर्वमें गतवर्षमें जो कोई वैर विरोध एक दूसरेके प्रति हो गया हो, उसके लिये 'मिच्छामि दुक्कडं' 'मेरे दुष्कृत मिथ्या हो' ऐसा कहकर क्षमा
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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