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________________ ३३० जैनधर्म २. जैनपर्व दशलक्षण या पर्युषणपर्व जैनोंका सबसे पवित्र पर्व दशलक्षण पर्व है । दिगम्बर सम्प्रदाय में यह पर्व प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला पंचमी से चतुर्दशी तक तथा श्वे० में भाद्रकृ० १२ से भाद्रशु० ४ तक मनाया जाता है। इन दिनोंमें जैन मन्दिरोंमें खूब आनन्द छाया रहता है । प्रतिदिन प्रातः कालसे ही सब स्त्री-पुरुष स्नान करके मंदिरोंमें पहुँच जाते हैं और बड़े आनन्दके साथ भगवान्का पूजन करते हैं। पूजन समाप्त होनेपर प्रतिदिन श्री तत्त्वार्थ सूत्रके दस अध्यायोंमेंसे एक एक अध्यायका व्याख्यान और उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य इन धर्मोमेंसे एक एक धर्मका विवेचन होता हैं । इन दस धर्मोके कारण इस पर्वको दशलक्षणपर्व कहते हैं, क्योंकि धर्मके उक्त दस लक्षणोंका इस पर्व में खासतौर से आराधन किया जाता है । व्याख्यानके लिये बाहरसे बड़े बड़े विद्वान् बुलाये जाते हैं, और प्रायः सभी स्त्री-पुरुष उनके उपदेश से लाभ उठाते हैं । त्याग धर्म के दिन परोपकारी संस्थाओंको दान दिया जाता है और आश्विन कृष्णा प्रतिपदाके दिन पर्वकी समाप्ति होनेपर सब पुरुष एकत्र होकर परस्परमें गले मिलते हैं और गतवर्षकी अपनी गलतियोंके लिए परस्परमें क्षमायाचना करते हैं। जो लोग दूर देशान्तर में बसते हैं उन्हें पत्र लिखकर क्षमायाचना की जाती है । इन दिनोंमें प्रायः सभी स्त्री-पुरुष अपनी अपनी शक्तिके अनुसार व्रत उपवास वगैरह करते हैं । कोई कोई दसों दिन उपवास करते हैं, बहुतसे दसों दिन एक बार भोजन करते हैं। इन्हीं दिनोंमें भाद्रपद शुक्ला दशमीको सुगन्धदशमी पर्व होता है, इस दिन सब जैन स्त्री-पुरुष एकत्र होकर मन्दिरोंमें धूप खेनेके लिए जाते हैं, इन्दौर वगैरह में यह उत्सव दर्शनीय होता है ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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